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४ तरहको। दूध अघोटा, हिंडोराकी शय्या उतरे । अरगजाकी । कटोरी। छोंकीदार । पणो। ये सब बन्द होय ॥ इति श्रीनवनीतप्रियाजीके घरकी नित्यकी तथा उत्सवकी सेवा विधी वस्त्र शृङ्गार तथा सामग्रीकी विधि विस्तार पूर्वक और सातों घरकी सेवाविधि संक्षेपसों लिखी है ॥ श्रीकृष्णाय नमः ॥
अथ ग्रहणविधिः।। ग्रहणके पहले दिन कोरी सुपेदी चढ़ावनी । रसोई बालभोगकी, अपरस सब निकासनी छाती ताई पुतवावनी। माटीके वासन रसोईके बालभोगके सब निकासने । और सँधाना घरमें, | पापड़में, बड़ी, पाटियाकी सेवमें, दूधघरमें, गुलाबजलमें फूलघरमें, शाकघरमें, भण्डारमें, शय्यामन्दिरमें निज मन्दिरमें| सब ठिकाने कुश धरने । दूधघरके वासन भंडारके चूनके वासन नये नहीं छुवे । बन्धेबन्धाये बीड़ा पान घरमें रहे। मन्दिरमें नहीं रहे। दूधघरमें सिद्धकार सामग्री नहीं रहे।
और ग्रहणकी तैयारी होय तब कोठीको जल निकासनो। बासन सब ऑधे करके धरने । मन्दिरमें धुवे वस्त्र होंय घरी करे । भये घरेहोय सो नहीं छुवे । वामें कुश धरनो । जल पानकी चपटिया तथा प्रसादी चपटिया निकासनी । दीवी, आरती, घण्टा, झालर, धूप, दीप ये सब मँझवावने । जल तवाई सब ठिकानेकी निकासनी। चूनेकी जगेमें जल तवाई होय तहाँ चूनेसों पुतवावनी । एकबेर पुते मँजे पाछे दीवा जरे सो नहीं छूवे । ग्रहणसमयमें उनकू छूवनो नहीं । और सरकायवेको उठायवेको काम पड़े तो पतुवासों करनो । मुखिया तथा भीतरि-। यानकू कोरे धोती उपरना देने । अब मंगलामें शृङ्गार ऋतु अनुसार रहेतो होय सो राखनो । ग्रहण समे झारी पास नहीं
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