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श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भूलोंके भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गते ब्रह्मावतैकदेशे श्रीअमुकदेशे अमुकमण्डले अमुकक्षेत्रे अमुकनामसंवत्सरे श्रीसूर्य दक्षिणायनगते वर्षतौँ मासोत्तमे श्रीभाद्रपदमासे शुभे कृष्णपक्षे अष्टम्याममुकवासरे अमुकनक्षत्रे अमुकयोगे अमुककरणे एवंगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ श्रीभगवतः पुरुषोत्तमस्य कृष्णावतारप्रादुर्भावोत्सवं कर्तुं तदङ्गत्वेन पञ्चामृतस्नानमहं करिष्ये । जल अक्षत छोडनो। फिर जा स्वरूप। पञ्चामृतस्नान होय ता स्वरूपर्फे चरणारविन्दमें महामन्त्रसों तुलसीदल हाथमें लेके समपनी । पाछे हाथमें तबकडी लेके वा स्वरूप] तिलक शलाकासों दोय बेर करनो। और चाँदीकी छोटी चिमटीसों अक्षत दोय वेर लगावने । पाछे महामन्त्रसों तुलसी पञ्चामृत करायबेको शंखमें तथा पञ्चामृतके कटोरानमें पधरावनी । पाछे पञ्चामृत करावनो । प्रथम दूधसों स्नान कराइये, पाछे दहीसों, घृतसों, बूरासों, पाछे सहतसों। पाछे फिर दूधसों, पाछे शीतलजलसों नहाय पाछे स्वरूपकों हाथमें पधरायकें अरगजासों स्नान कराय पाछे समोये जलसों स्नान करावे । फिर अङ्गवस्त्र करायकें मुख्य स्परूपके आगे गादी दक्षिण ओर पधरावने । पीताम्बर लाल दरियाईको उढावनो । पाछे श्रीमुख्यस्वरूप
श्रीठाकुरजीकू पीताम्बर किनारीको तथा सादा ओढावनो। || माला फूलकी दोऊ ठिकाने घरावनी। फिर तिलक दोऊ ठिकाने करनो। तामें प्रथम तिलक पञ्चामृत भये स्वरूपकों दोय दोय बेर करनो पाछे अक्षत दोय दोय बेर चिमटीसोंलगावने तुलसी दोनों स्वरूपनकों समर्पनी। बीड़ा दोऊ आड़ी
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