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________________ - - मन्त्र लिये पीछे अधिकार जैसे ब्राह्मणको गायत्री मन्त्र पीछे। वैदिक कर्ममें अधिकार या भांति दोय मन्त्र देकें दैवी जीवको अंगीकार किये, तब भगवन्माहात्म्यकी स्फूर्ति भई । एक तो श्रीमदाचार्यजीको भूलोकमें प्रागट्य ताको यह आशय । अब दूसरो आशय फलप्रकरणमें भगवान् कहें-" न पारयेहं निरवद्यसंयुजां स्वसाधु कृत्यं विबुधायुषापि च ।” देवताकी आयुष्य लेके तुम्हारो भजन कीजिये तोहू पार न आवे, श्रीमुखतें आज्ञा किये पर कृतिमें न आयो श्रीमुखतें कहे हैं। तातें श्रीमुखावतार होय तबही वचन प्रतिपालन होय । यातें या अवतारमें सेवा किये सेवाके अधिकारी तो जनरत्ना इनके भावको अनुरसण करें या प्रकार दास्यभाव किये । याहीतें कहैं-" इति श्रीकृष्णदासस्य वल्लभस्य हितं वचः॥” सेवा कृष्णदासकी "कृष्णसेवा सदा कार्या” इति वाक्यात् । पर ब्रजभक्तनके भावपूर्वक करनी तातें श्रीकृष्णदासस्य श्रीयुत जे कृष्ण तिनके दास जो लीलानकी भावना करें तब प्रभुहू लीलानुकूल वपु धरिवेई भक्तिसहित प्रादुर्भूत होंय। यद्यद्रिया त उरुगाय विभावयति तत्तद्वपुःप्रणयसे सदनुग्रहाय।” इति वाक्यात् । या प्रकार सेवा तथा भावना करतहैं तातें श्रीकृष्णके दास और आस्यरूप हैं। तातें वैश्वानर अग्नि उभयरूप है पुराण पुरुषोत्तमको यही लक्षण विरुद्धधर्माश्रय होय ईश होय सो दास क्यों दास होय सो ईश क्यों,यथा-"अपाणिपादो जवनो ग्रहीता" तद्वत् । याहीतें श्रीआचार्यनको श्रीअंग नित्य भौतिक नहीं यातें दोय आज्ञा न मानें “ देहदेशपरित्यागः" देह नित्य देश ब्रज दोऊनको कैसें परित्याग होय ? यातें तीसरी आज्ञा किये तामें पहली दोऊ आज्ञा सिद्ध भई । “ तृतीयो लोकगोचरः " -- - -
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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