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________________ भाग्यको ही दान अरु ये अमिकुमार हैं। ताते सब सुधाको दान याते भगवत्त्व है । अरु मन्त्रोपदेशकर्ता है यह तो भक्त| कार्यार्थ आविर्भूत और स्वकार्यार्थ तो दास्यरसानुभव करत है। सो यहाँ शेषभाव यह है स्वामिनीदासत्व यातें अशेष माहात्म्य जो जनको उद्धरण रूप सो तो सब बालकत्वावच्छिन्न स्थापन किये, परि शेष माहात्म्य जो मुख्य स्वामिनी दासत्व यह तो आप विषे है। “ मय्येव प्रतिफलतु” ताते ऐसो उपाय करिये जो या शेष माहात्म्यकी कृपा करें। श्रीमदाचार्यजी पुष्टिमार्गको प्राकट्य करि स्थापन किये और श्रीगुसाँईजी मार्गको विस्तार किये जैसे महाप्रभूनके आधे शृंगार दोय हते मुकुट तथा पाग तैसें श्रीगुसांईजी मुकुटहीमेंते सब श्रृंगार प्रगट किये । कुलही बांधिक तीन वा पांच चन्द्रका धरे तब मुकुटही है बर्हिनृत्यानुकरण ऐसो मुकुटहू हैतथा कुलहीहू हैं प्रभुके केश बड़े हैं सो मध्यके केशकी शिखा बांधि आसपासके केशकी मेड़ करिये । तब गोटीपर भांतिभांतिके फूल धरि वस्त्र मिही ऋतु प्रमाण लपेटे और आसपासके केशके में हैं सोहू वापर फूल धरि वस्त्र लपेटे। दोय छेड़ाको वटुका लेइ बाँई ओरतें तुर्राके ठिकाणे तुर्रा सवारि पीछेकी ओर दोय पेच देय दाहिनी ओर तुर्रा राखेसे तब कुलही भई । गोटीलांबी करदेइ तो टिपारो होय आगे पेच आवे गोटी रहें तो गोटीको दुमालो होय गोटी न राखिये तो दुमालो गोटीविनाको होय | एक तुर्रा राखिये तो फेंटा होय गोटी तथा एक तुर्रा राखिये तो | गोटीको फेंटा होय गोटी न राखिये बीचमें तुर्रा राखिये तो पगा होय तुर्रा न राखिये गोल तथा मेंड राखिये तो तुरी विनाकी कुलही होय । इत्यादि भेद सब कुलहीमें कहें 2 -
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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