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________________ कुलही मुकुटको परम प्रिय हैं। याते श्रीमदाचार्यजी संक्षेप सब प्रगट किये। श्रीगुसांईजी वाही संक्षेपको विस्तार या प्रकार किये जैसे प्रभु गीताको वार्त्ता संक्षेपते हैं विस्तार श्रीभागवत हैं श्रीमदाचार्यजी सुधारूप हैं वेणुमें आनंद सारभूत सुधाको स्थापन सुधात्रयाधारत्वेन वेणुभावापन्न श्रीगुसांईजी हैं । तातें वेणुहू पुष्टिमार्गीय षडुणैश्वर्यसंपन्न हैं धन्यास्तीति श्लोक याते बालकनमें गुणको प्रागट्य किये श्रीविट्ठल या नामतेहू षड्गुणको प्रागट्य है । " सर्वेषामितरसाधनासाध्य भगवत्प्राप्तिसंपादनमें ऐश्वर्यम् 9, कर्मज्ञानोपासनादिजनितदेहादिक्केशाभावसंपादनं वीर्यम् २, पूर्वोक्तं सर्वमनेनैव नाम्ना सर्वत्र प्रसिद्धमिति यशोनिरूपितम् ३, श्रीस्तु वर्त्तत एव ४, वित्तं ज्ञानं ५, ठं शून्यं वैराग्यं तानि लाति आदत्ते स्वीकरोतीत्यर्थः । इदं मर्यादामार्गीमयैश्वर्यादिकम् ' " || सो नाम रत्नाख्यकी टीकामें निरूपण किये हैं । तातें भूमिविषे भक्ति भगवन्माहात्म्य ताके प्रचारार्थ वंश प्रगट किये। अथ श्रीगिरधरजीको स्वरूप १ प्रथम ऐश्वर्यगुणको प्रागट्य अतएव श्रीनवनीतप्रियजी श्रीमथुरेशजी दोऊ स्वरूप विराजत हैं । अथ श्रीगोविंदरायजीको स्वरूप २ वीर्यगुणको प्रागट्य अतएव विद्वन्मंडन के प्रागट्यविषे श्रीगिरधरजी विज्ञप्तिकिये। यह शब्द व्याकरणसिद्ध जान नहीं पड़त तब श्रीगुसांईजी श्रीगोविंदरायजीकों बुलायके कहें, यह शब्द कैसें होय ? तब व्याकरणमें सिद्ध हतो सो प्रयोग साधे यातें आठों व्याकरण आवतहते "" इन्द्रश्चन्द्रः काशकृष्णापिशली शाकटायनः । पाणिन्यमरजैनेन्द्रा इत्यष्टौ शाब्दिकाः स्मृताः ॥ " श्रीबालकृष्णजीको स्वरूप ३ यशगुणको प्रागट्य ऐसो भक्तिमार्गको आग्रह जो विवाहादिकविषं कुलदेव्यादिको पूजन करनों ता ठिकाने
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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