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श्रीपादुकाजीकूँ अभ्यङ्गस्नान। जन्माष्टमी, १ तथा रूपचतुर्दशी, २ श्रीआचार्यजी महाप्रभुजीको उत्सव, ३ श्रीगुसांईजीको उत्सव ४ अरु शंखते । जलसों स्नान यात्राके दिन, ५ और तप्तशुद्धोदकसों स्नान डोलके दूसरे दिन॥६॥ अरु ग्रहणको रग्रहस्नान कराइये। ७ अरु राजभोगके साथ न्यारो थार आवे ॥याक्रमसों श्रीपादुकाजी विराजतहोंय तो कारये। ता उपरान्त घण्टां विज्ञापयेत् । “हरिवल्लभनादासि वं घण्टे भगवत्प्रिये ॥ प्रबोधावसरं ब्रूहि हरिव्रजवधू व्रतम्" ॥ ६६॥ पाछे घण्टाके तीनबेर बजाय हाथ धोय पोछिके शीतसमे ताते करि शय्यामन्दिरमें जाय शय्यानिकट पॉईतके पास हाथजोड ठगडे रहे। विज्ञप्ति कारये । तदा प्रभु प्रबोधयेत् “ जयजय मङ्गलरूप जागिये गोकुलके नायक ॥ भयो भोर खग करत सोर युवतिन सुख दायक ॥ उडुउडुपति अस्त उतिभानु प्राची अरु नावत ॥ मुर्शित कुमुद सरोज मुकुल अलिगन मुकुलावत ॥ दम्पतिदुःख विछुरन प्रेमभर चक्रवाक आनन्दहुआ ॥ निशि नन विरहव्याकुल सखा देख्यो चाहत वदन तुअ॥१॥जयजय मङ्गलरूप जागिये गोवर्द्धनधारी ॥ मन्द दीप दुति बहत पवन शीतल सुखकारी ॥ चन्द अस्तमित जात मूच्छित चकोरचित ॥ वेदध्वनि द्विज करत प्राप्त सन्ध्यावन्दन हित ।। फूले गुलाब वनकुसुम सब धर्मकर्म सब व्रत हुआ ॥ जागिये । ब्रजराज खोलि चक्षु देखन हित मुखकमल तुअ॥२ ॥ जय-| जय मडलरूप जाग ब्रजजीवन मेरे ॥ सुन्दर माखन मथित अबहि लाई हित तेरे ॥ मेवा मिश्री दही दुग्ध पकवान घनेरे ॥ वेग धोय मुख लाल खाय वनजाय सवेरे ॥ सङ्ग छाकके सब
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