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________________ विज्ञापन "प्रियारतिश्रमहरं सुगन्धि परिशीतलम् । यामुनं वारि पात्रेस्मिन भव श्रीकृष्णतापहृत् ॥ ६२ ॥ इदं पानीयपात्रं हि ब्रजनाथाय कल्पितम् ॥ राधाधरात्मकत्वेन भूयात्तपमेव तत्" ॥६॥पाछे झारीभरि नेवरा पहिराय जलपानकी मथनीमें जल भरि, सिंहासनके बॉई दिशि तबकडीमें झारी पधराइये । या समें नवरत्नको पाठ करिये । ततः भोगपात्रं सज्जी कुर्यात् ॥ तापाछे मंगलभोगको थाल साजनो । विज्ञापन श्लोकः॥ "स्वामिनीकररूपाणि भावस्वर्णमयानि वै ॥' श्रीकृष्णभोज्यपात्राणि सन्तु ते मत्कृतानि हि ॥६४॥ थारमें न्यारीन्यारी कटोरिनमें नवनीत (माखन) दही, दूध, बूरा, मिठाई, मलाई, पक्कान, सधानाप्रभृतिक, माखन,बूरा अगाडी राखनो दूधमें कटोरी तेरावनी, और आँबा खरबूजाकी ऋतु होय तब धरने या प्रकार थाल सिद्धकर यथासौकर्य पडघापर मन्दिरमें सिंहासन पास ढांकिके धरिये। या समे मधुराष्टकको पाठ करिये। ता उपरान्त हाथ धोय श्रीपादुकाजीकी सेवा होय तो जगाइये। ततः श्रीपादुकाजी विज्ञाप्योत्थापयेत् । अर्थ-श्रीपादुकाजीकी स्तुतिकरके जगावने । “वन्दे श्रीवल्ल भाधीशविट्ठलेशपदाम्बुजम् ॥ यत्कृपातो रतिर्भूयाच्छ्रीगोपीजनवल्लभे ॥६५॥ उपरान्त सप्तश्लोकीको पाठ करिये। श्रीपादुकाजीकूँ जगाय गोदमें मिही वस्त्रमें पधराय शय्याकी पलॅमड़ी झटकारके फिरसूं बिछावनी । पाछे फुलेल समर्पिके वस्त्रसों पोंछि पलँगड़ीपे पधराइये । वस्त्र ऋतु अनुसार उढाइये। पास झारी, बीडा, दूसरे छोटे पटा रहे । अरु चंदनके | श्रीचरणारविन्द,श्रीहस्ताक्षर होंय तो फुलेल नहीं वहां वसनाँ बदालिये। थैली पहेराइये।
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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