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सखासों धेनु चरावन जा गिरि॥क्रीडाकार दाऊसहित घरवेगि संवारे आउ फिरि ॥३॥ जयजय मङ्गलरूप जागिये हो जागि कन्हैया॥भयोप्रभात जलजानन ओरि सजि छैया॥बछवा पावत खीर चरण वन जात है गैया ॥ संग सखा सब लिये देखि ठाढे बलभैया ॥ उठि पहार काछिनी मुकट धरि ओढि पीताम्बर बेनुले ॥ जोई रुचे सो खाइके वृन्दावन को करि बिजे ॥४॥ जयजय मङ्गलरूप जागिये सरसिरहलोचनीमनमेंजानत निशा लग्यो तम प्राचीमोचन ॥ किंकिनि कंकन वलय चलित श्रुति भोर सोर अति ॥ सुनत नाहिं गोपाल ग्वाल गावति लीने यति ॥ शंख शृङ्ग झालार बजि ग्वालबाल दोहन चले ॥ गाय वच्छ रम्भन करे सु अजहू तुम सोवतभले ॥५॥ जयजय मङ्गलरूप जागि ब्रजराज लाडिले ॥ भयो प्रभाति कुमुदनि लजात जलजात चाडिले॥बीन मृदंग साज सहित गन्धर्व गुन गावत ॥ द्वारेदेते अशीस भाट चारण ककहावत ॥ तेरे संगके सखा अबलगे कोउ न सोवहि ॥ आलस तज सरसनन उठिकरि मुखक्यों न धोवहि ॥६॥ जयजय मंगलरूप जागिहो जागि व्रजभूषण ॥ अरुण उदयमो नींद कहत द्विजवर अतिदूषण ॥ उठिकरि माखन खाण्ड और तर दूध दहीकी ॥ मिश्रीके संग धार लाल लेहो महीकी। चिरिया मृदु बोलत भोर भयो धेनु दुहि श्रृंगारकार। कछु भोजन कार लहो मुरली मुकट धरि ॥ ७॥ जयजय मंगल रूप जागिश्रीनाथ गोवर्द्धन ॥ हम पठये तोहि लेन दाऊ चलत वृन्दावन ॥चाँदनी चन्द्र तजत तारा अम्बरगन।तजन प्रगल्भा सुखहित नव वधू दुःख मन ॥ तम्बोल तजत जीभस्वाद रस तजत कमल निसि भवर भज॥ श्रीनन्दरायके लाडिले तू आलस निद्रा क्यों न तज॥८॥
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