SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ MICROPSISAMPRIMARMER - लाधीश चरणामृतमादरात् ॥ अतस्त्वत्सेवनात्सिद्ध्यै मयि दीने कृपां कुरु ॥३९॥ या विज्ञप्तिसों चरणामृत ले हाथ ऑखिनसों लगाइए । ततो मुख शुद्धिं कुर्यात् ॥ “कृष्णचर्षित ताम्बूलं चर्बयेच्चाप्यतंद्रितम् ॥ श्रीगोकुलेश (प्रभु) सेवायां मुखामोदविवृद्धये" ॥४०॥ मुखशुद्धि बीडा वा लौंगसे व्रतादिक दिन बचायके कारये।ततः स्वाक्षे तैलं विलेपयेत् । तामें षष्ठी द्वादशी व्रतादिक संवर्जि तैल लगाइए। ततः स्नानं कुर्यात्। "श्रीकृष्णवल्लभे देवि यमुने तापहारिणि ॥ सेवायै स्नातुमिच्छामि जलेऽस्मिन्सन्निधिं कुरु " ॥४१ ॥ स्नान समय भीजी पर्दनी पहरि शीतल जलसों कुल्लाकरि श्रवण, नासिका स्वच्छकार जलके पात्रनको छोटा बचाय मुख{दि अन्तःकरणमें भगवन्नाम लेत स्नान कारये। पाँयनको शेषजल मस्त कपै नहीं डारिये उपरान्त अङ्गवस्त्र कार पर्दनी बदलि पाँव | जवाताई धोय पोंछ पाछे अपरसकी धोती पहरिए । चारयो पल्ले (छोर ) खोसि पहरिये उपरना ओढि श्रीयमुनाष्टकको पाठ करत जगमोहनमें आय. चरणामृत लेनो तासमय श्लोक-गृह्णामि गोकुलाधीश चरणामृतमादरात् ॥ अतस्त्वत्सेवनात्सिद्धिर्मयि दीने कृपां कुरु॥४२॥ अब आसनपर बैठि पास सन्तोकामें आचमनी आदि सन्ध्याको साज तिलक मुद्राको साज चरणामृत प्रभृति जप, पुस्तक, माला आदि सब राखिये। ततः आचमनं कुर्यात् । आचमन समय नारायणमन्त्र पढिये तीनवेर करने पीछे अंगूठाके मूलते मुख पोंछिए उपरान्त गायत्री अथवा अष्टाक्षर मन्त्रसों शिखाबन्धन करिये। - -
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy