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सुई, दोरा, प्रभृतिक, सब सामग्री, आगेते सिद्धकार राखिये । अरु शृंगारकी पेटीमें रंग रंगके आभरन, जडाऊ लाल रंगके ' पीरे, हरे रंग के, आसमानी, श्वेतरंग के, पिरोजाके, मीनाके, मोतीके, हीराके, कांच प्रभृतिके सब साज सिद्धकारी न्यारी न्यारी बन्टीमें धरिराखिये । सब आभरन दोऊ ठौर के अरु गादीके बडे हार प्रभृतिक, सब साज सिद्धकारिराखिये । पाछे यथा सौकर्य अरु असौकर्य तो याही रीतिसों पोत के युक्तिसों करिये । परन्तु व्यसनसों करिये । इतनी सब तैयारी कारके । ततो वस्त्रं परिधारयेत् । "प्रियांगतुल्यवर्णानि वस्त्राणि वजनायक । समर्पयामि कृपया परिधेहि दयानिधे ॥ ९३ ॥ अब प्रथम प्रभुके श्याम वस्त्र वा श्याम पाट श्रीमस्तकपर उपेटिये । तापर पाग, कुल्हे फेंटा, चीरा, पुरातन पाग, दुमाला, टिपारा, मुकुट ये सब सम - यानुसार घराइये । पाछे ठाडे स्वरूप होंय तो तनिया, सूथन ऊपर वागा धराय पटुका बाँधिये । अरु बालकेलि स्वरूपको होय तो पाग, बागा, उपरना, अरु दूसरे स्वरूपकों, लहँगा घराय चोली, तथा साडी धराय, साडी पर फुफुदी बाँधिये । शृंगार किये पीछे चादर उठाइये । शीत कालमें वस्त्र रुईके वा पाटके रेशमके वा जरकसी, वा छापा प्रभृतिक ये दशहराते श्रीजीके उत्सव ताँई, उपरान्त श्वेत वस्त्र साज डोल ताँई । उपरान्त वस्त्र छोटके अक्षय तृतीया के पहले दिन समयानुसार पहराय उपरान्त उष्ण कालके वस्त्र, साज, श्वेत मिहि रथयात्रा ताँई । उपरान्त मिहि रंगीन खासा प्रभृतिक रंगके दशहरा ताँई या प्रकार समयानुसार घराइये, उपरान्त शृंगारकी पेटीमेंते आभरनकी बन्टी, काढि आगे धरिये, वस्त्रसों खुलते आभरन काढिये नित्य शृंगारवस्त्रनूतन घराइये, यथावकाश नाम जैसो