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च त्वदनायातस्मरणात्तापभावनः ॥ प्रियास्पर्शोष्णनीरेण स्नातो भव व्रजाधिप” ॥ ९० ॥ ततो जल सुहातो सो छोटी लुटियासों मंदधारसों न्हवाइये । ततो दृष्टिदोष निवारयेत् ॥ "कोटिकन्दपलावण्ययशोदोत्सङ्गलालिने ॥ दृष्टिदोषोपघाताय | तत्तोयं वारयाम्यहम् ॥९१॥ एक लोटी प्रभूपर वारडारिये।
तलोंगप्रोक्षणं कुयात्। स्नानार्द्रतानिवृत्त्यर्थे प्रोक्षितांग विभो मम ॥ दूरीकुरुष्व गोपीश कृपया लौकिकाताम्" ॥ ९२ ॥ मिहिं अंग वस्त्रसों कोमल हाथसों अंगप्रोच्छन कारये। उपरान्त शृंगारकी चौकीपर पधराइये । वस्त्र समयानुसार उठाइये। पीछे दूसरे स्वरूपको याही रीतसों नहवाइये । अंगवस्त्र कार प्रभुकीबांई दिशि वस्त्र उठाय पधराइये । पाछे श्रीशालग्राम वा श्रीगोवर्द्धनशिलाहोय तो चन्दन लगाय न्हवाइये । अंगवस्त्र करि पधराइये! अरु उत्सव वा शनिवार होयतो अकेलो उष्ण जल सों नहवाइये । स्नान शृंगार समय मेवा मिठाईकी कटोरी पास रहे। झारी, बीड़ा मंगलाके छोटे पड़घापर पास रहे। पाछे स्नान सामग्री उठाय ठिकाने धरिये । मन्दिर वस्त्र फिराय हाथ धोय पोंछिये । पाछे शंगारकी सामग्री सब आनि धरिये वनकी झांपी पास राखिये । रंग रंगके वागा, पिछोड़ा धोती, उपरना, तनिया सूथन, पटुका, पाग फेंटा, कुल्हे टिपारो, जरकसी चीरा, पुरातन पाग फेंटा, दुमालो प्रभृति और दूसरी ठौरके वस्त्र; चोली, लहँगा साडी, चादर प्रभृतिक । गदर, फरगल, कवाय, चंद्रिका, चौकी, किनारी,श्यामपाट वा वस्त्रके टूक, गुञ्जा, बुधवन्त, मोम, कतरनी, घोटा, टीकी, सिन्दूर कजलकी डिबिया, चोवा अतर,मृगमद, मुकुट काछनी,रंग रंगकी
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