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त्वामहं शरणं गतः” ॥ ८४ ॥ ऐसे दण्डवतकरपाछे हाथ धोय पोंछि भीड़ सरकाय टेरा खेंचि उपरान्त श्रृंगारकी चौकी तथा स्नानसामग्री सब लाय धरिये । ततः स्नानार्थ विज्ञापयेत् । प्रियांगसंगसम्बन्धिगन्धसंबन्धतो भवेत् ।। कदाचित्कस्यचिद्भावो ह्यतःस्त्रानं समाचर' ।। ८४॥ पाछे शृंगारकी चौकी पर पधराइये । ताके जेमनीआडी चौकि झारी| बीडा, मंगलाके होय सो धरने ।श्रृंगार भोगमें मेवाकी कटोरी | ढकना ढाँकके पधरायदेनो। शीत समय अंगीठी पास राखिये हाथ ताते कारये जल तातो करि समोइये । रात्रिके आभरन वस्त्र बडे करि अञ्जन पोछीनानके पीठापर पधराइये । उत्सव वा शनिवार होय तो अभ्यंगसामग्री शीत समय ताती करिये। अरु षष्ठी, द्वादशी होय तो शुक्रवारकों अभ्यंगस्नान कराइये॥ ततो तैलाभ्यंगं कुर्यात् "स्नेहात्मगन्धतैलस्य लेपनागोकुलाधिप ॥ वितरात्यंतिकी भक्ति मयि स्नेहात्मिकां विभो॥८६॥ फुलेल चरणारविन्दसों सर्वांगमें कोमल हायसों लगाइये। ततः उद्वर्त्तनं लेपयेत् । “ श्रीसौगन्धेन पूतेन निशाश्रमनिवारिणा ॥ उर्तितेन त्वद्भक्तिदायिना कुरु मे कृपाम्” उबटना याही | रीतिसों सागमें कोमल हाथसों लगाइये। __ ततो मङ्गलस्नानं कारयेत् । स्नेहान्मद्भावगन्धेन प्रियगन्धातिचारुणा॥ अभ्यतो मङ्गलस्नानं कुरु गोकुलनायक" ॥ ८८॥ एक लोटी ताते जलसों न्हवाइये। ततो नाम तापीछे काश्मीरं लेपयेत् (केशर लगाइये) चारुचन्दनसंयुक्तं काश्मीरं सुमनोहरम् ॥ मङ्गलस्नानसिध्यर्थ लेपयामिव्रजाधिप ॥ ८९॥ चन्दनउबटनाकीरीतिसों । सर्वांगमें कोमल हाथसों लगाइये । ततः स्नापयेत् । “दिवा।
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