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________________ R INon SORDETAMININET । - - - - अवकाश हो । तथा श्रृंगारं विचारयेत् । “ बजे सरस रूपात्मन् शृंगारं रचयाम्यहम् ॥ स्वीकुरुष्व त्वदीयत्वात्स्वप्रियं | धारय प्रभो ॥ ” शृंगार चरणारविन्दते सब धरिये, नूपुजेहरी, गूजरी, पेजनि, प्रभृति श्रीचरणारविन्दमें धरिये, कटिमेखला, क्षुद्रघंटिका, कौधनी प्रभृतिक कटिपर धरिये, बाजूबन्ध, पोहोची, हथसाँकला, लर प्रभृति, श्रीहस्तमें धरिये, बन्दी, त्रिवली,हमेल प्रभृतिक, हृदय कमलपर धरिये । इकलरी दुलरी कण्ठाभरण प्रभृतिक श्रीकण्ठमें धरिये । तिलक अलकावली, श्रीप्रभुकपोलपर धरिये । शिरपेंच, लटकन. कलङ्गी प्रभृतिक पागपर धारये । करनफूल, कुण्डल, मयूराकृत, मकराकृत, मीनाके जडाऊके श्रवणकमल पर दाऊ दिशि धरिये । नकवेसरि,दाहिनि दिशि धरिये । चोटी,चन्द्रिका दाहिनी दिशि धरिये । छोटे हार, श्रीकण्ठमें धरिये । और बडे हार श्रीगादीपर धरिये । यथास्थित श्रृंगार करिये । ततो गुंजाप्पणम् । “प्रियानासाभूषणस्थं बृहन्मुक्ताफलाकृतिम् ॥ समर्पयामि राधेश गुंजाहारमतिप्रियम् ॥ ९५ ॥ गुंजामाला हारके नीचे धराइये। ततश्चन्द्रिकार्पणम् ॥ " मिलितान्योन्यांगकान्तिचाकचक्यसमं विभो। अंगीकुरुष्वोत्तमांगे केकि |पिच्छमतिप्रियम् ॥ ९६॥ चन्द्रिका दाहिनी दिशि धरियें। ततः नाम ताके पीछे अञ्जनं कुर्यात् “श्रीगोपीकूस्मितं श्रीमच्छेगारात्मकमञ्जनम् । शोभार्थमात्मदेहस्य स्वीकुरुष्व व्रजाधिप”॥ ९७॥ श्यामरूप होय तो मीनाके अलंकार धरिये और जो गौर स्वरूप होय काजरको अञ्जन करिये। भ्रुवपर बिन्दुका करिये । उपरान्त दूसरे स्वरूपको याही रीतिसों शृङ्गार करिये। तामें श्रीस्वामिनीजीको विशेष इतनो। । -
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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