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पोत आसमानीकी लर श्रीहस्तमें तथा श्री ण्ठमें और कर्ण - फूलके साथ बन्दी, टीकी, झूमखा घराइये और नकबेसर बाई दिशि धराइये । श्रीमस्तकपर पाटकी वेणी, गुही फूदना लटकाइये पाछे भावात्मकविज्ञप्तिसों प्रभुको सिंहासन गादीपर पधराइये । दूसरे स्वरूपको श्रीस्वामिनीजीको बाँई दिशि पधराइये । शीतसमें फरगुल इकट्ठे उठाय बैठाइये । अरु श्रीबालकृष्णजी स्वरूप होय तो फरगुल वा उपरना उठाइये । और ऋतुअनुसार शृंगार करके पाछे माला धरावनी । ततः कुसुमापणम् | सब स्वरूपनको माला धरावनी । ताकी विज्ञप्ति - "कुसुमान्यर्पितानीश प्रसीद मयि सन्ततम् ॥ कृपादृष्टदृग्वृष्टया त्वदंगीकृतशोभितम् " ॥ ९८ ॥ पुष्पमाला चोवा अगरसों सुगन्धित करि धराइये, बागा वस्त्र प्रभृतिक सब सुगन्धित करि धराइये | उपरान्त शृंगारकी पेटी, वस्त्रकी झापी प्रभृतिक उठाय ठिकाने धरिये ।
ततो वेणुधारणम् । विज्ञप्तिः ।
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"श्रीप्रियाकार दौत्येकभावेनातिप्रियः सदा ॥ वेणुं धृत्वाऽधरे कृष्ण पूरयस्वामृतस्वरैः ॥ ९९ ॥ वेणु दाहिनी दिशि धरिये । शृंगार दर्शन खुलायके, ततो दर्पणं दर्शयेत् । विज्ञप्तिः “प्रियानखात्मकादशैं विलोक्य वदनांबुजम् ॥ व्रजाधीश प्रमुदित कृपया मां विलोकय " ॥ १०० ॥ आरसी दिखाय ठिकाने धरिये । चरण स्पर्शकारि दण्डवत करिये । फिर चरणामृत लेके हाथ धोके ay ast करनो । फिर झारी ठलायके जलपाaat मथनी में झारी भरके नेवरा पहिरायके सिंहासन के ऊपर श्रीप्रभु दोई आडी झारी धरनी । पूर्वोक्त रीतिसों एक झारी