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धरे तो वाई दिशि धरनी। अब सिंहासन वस्त्र मोडके भोग वस्त्र बिछावनों । मन्दिर वस्त्र करि चौकी पडघा माडिके टेरा करिये । गोपीवल्लभ भोग धरनो । ताको प्रकार-अब सखडी भोगमें भातको थाल अगाडी आवे ।
दारको कटोरा कढीको कटोरा, शाक भुजेनाकी कटोरी, रोटी लीटी, पापड़, पीकी कटोरी धरके थाल साँननों । और चमचा १ घीकी कटोरीमें धरनों । एक एक चमचा कढ़ीमें दारों धरनों और अनसखड़ीको थार बाँई आडी पडवापे धरनो । तामें सादा पूड़ी, खासा पूड़ी, मैदाकी पूड़ी, जीरापूडी और मीठी पूड़ी, लुचई खरखरी, थपड़ी और लोन, मिरच पिसेकी कटोरी और सघांनेकी कटोरी, दही, श्रीखण्ड, शाक, भुजेनां, कचरिआनकी कटोरी। या प्रकार गोपीवल्लभ भोग धरिके अरोगवेकी विनती करनी। तदा गोपीवल्लभभोगं समर्पयेत्।तदा विज्ञप्तिः।
"गोपिकाभावतः स्नेहाद्भुक्तं तासां गृहे यथा । मदर्पितं तथा भुंव कृपया गोपिकापते” ॥ १०१॥ ब्रजेश कृतशृंगारानन्तरे तद्गृहे यथा। अभोजि पायसं ताभिः सह भुक्ष्व तथैव मे॥१०२॥ या प्रकार विनती करि टेरा बैंचि बाहिर आइये । उपरान्त गुप्तरस स्वामिनीस्तोत्र, स्वामिन्यष्टकको पाठ करिये । प्रसादी जलकी मथनीमें झारीठलाय सिकोलीमें बीड़ा ठलाय, कसेंडीमें चरणामृत ठलाय, पाछे पात्र सब धोय साजिके ठिकाने धरिये । अंगवस्त्र, पीढ़ाके वस्त्र धोयके सुकायवेकों डारिये । तदा विज्ञप्तिः “वस्त्रप्रक्षालनादुष्टसंसर्गजमनोमलम् । महत्सेवाबाधरूपं मम श्रीकृष्ण नाशय”॥ १०३॥ अरु ततः उपरान्त ग्वालकी, पलनाकी, राजभोग धरवेकी सब त्यारी करके ग्वाल
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