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बुलवावनो। और भोग सरायवेके लिये झारी, तष्टी, बीड़ा लेके पूर्वोक्त रीतिसों आचमन मुखवस्त्र कराय बीडा तवकड़ीमें धरने । भोग सराय ठिकाने धरिये । और झारी जेमनी
और पलनाके पास धरनी । भोगकी और धोयके मन्दिरवस्त्र करनो । पड़या धोय धरने । कीर्तन होय । ततः प्रभुं प्रणमेत् ।।
" यशोदानन्द गोपीभिर्वीक्ष्यमाणमुखाम्बुजम् । वन्दे स्वलंकृतं कृष्णं बालं रुचिरकुन्तलम्" ॥१०४॥ ततः गोपालभोग क्रिया । ग्वालको
वस्त्र गादीपे विछावनो। तबकड़ी धैयाकी आठ अरोगावनी ॥ क्रिया ॥ दूध सेर दो वा तीन, मथनीघाटके डबरामें उष्णकरि बूरा मिलायके रैसों मथनो तब ऊपर फेन आवे सो धैयाकी तबकड़ीमें छोटी चाँदीकी झरझरीसों लेके टेराके भीतर समर्पत जैये । ज्योज्यौं फेन निकसत जाय त्यौं २ तबकड़ीमें समर्पिये आगेकी तबकड़ी उठाय हाथ धोय दूसरी समप्पिये जब फेन न निकसे तब थोरोसो बूरा और मिलाय दूध डबरामें समर्पिपये । तदा पयःफेनसमर्पणे विज्ञापयेत् । “स्वर्णपात्रे पयःफेनपानव्याजेन सर्वतः। अभ्यस्यति प्राणनाथः प्रियाप्रत्यंगचुम्बनम्” ॥१०॥ गोपापितपयःफेनपानं यद्भावतः कृतम् ॥ मदपितं पयःफेनपानं तद्भावतः कुरु" ॥ १०६॥ उपरान्त अल्पजलसों अचवाय मुखवस्त्र करि बीड़ा पूर्वोक्त रीतिसों समापये । पाछे भोग उठाय ठिकाने धरिये । मन्दिरवस्त्र फिराइये । ततः प्रेख (पालना) विज्ञप्तिः “गोपीजनस्य हृद्रूपं नवनीतप्रियः प्रियम् ॥ गोकुलेशोपवेशाय खतयोगतां भज” ॥ १०७॥ पाछे पालनो
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