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चन्द्रमाजीके पास श्रीबालकृष्णजी तथा श्रीमदनमोहनजी हैं। तहां उलूखल बन्धन तथा नलकूबर मणिग्रीवको उद्धार किये यह लीला प्रगट हैं। या लीलाके श्रवणतें भक्ति होय तथा भगवदीयनको सङ्ग होय । या प्रकार ६ स्वरूप गोदके हैं । तिनके स्वरूपको निरूपण किये भगवल्लीला नित्य हैं । स्वरूपात्मक हैं। तातें ये ६ लीलाके ६ स्वरूप कहै । ये लीलाप्रमाण प्रकरणके अन्तर्भूत हैं । तातें ये ६ स्वरूप गोदके कहवाये । तातें ये ६ स्वरूप लीलाकों विशद करिके-" यच्छृण्वतोपैत्यरतिवितृष्णा" या श्लोककी सुबोधिनीमें कहे हैं। ह्यां विस्तारके लिये नहीं लिखे हैं। तातें ये अष्ट स्वरूप तथा गोदके छः स्वरूप दृष्टिदेके भावना करिये। यहां स्वरूप भावना कहैं जैसी स्वरूपकी स्थिति हैं ता प्रकार कहे । अब लीला भावना लिखत हैं-लीला भावना जोलीलास्थके जे भक्त तिनकी भावना तहां प्रथम वामभागस्थ श्रीस्वामिनीजी विराजत हैं तिनको स्वरूप शृङ्गार रस भगवत्स्वरूपको आलम्बन विभाव गौर स्वरूप है । सो शृङ्गार रसको उद्घोषक है।शृङ्गार श्याम है गौर उद्घोषक हैं" श्यामं हिरण्यपारी " या श्लोककी सुबोधिनीमें शृङ्गार श्याम हैं। गौर उरोधक हैं यह कह्यो है। अवतार लीला विषे श्रीवृषभानुजा हैं सो मुख्य सुधाकार हैं भगवत्प्रादुर्भावके दोय वर्ष पहिले प्रागया हैं। प्रादुर्भावानन्तर जब दूसरो उत्सव आयो तब सुधाको आविर्भाव भयो । तातें कहें जो सुख नन्दभवनमें उमग्यो तातें दूनो होयरी और पांच वरसके श्याम मनोहर सात वरसकी बाला इन दोऊ कीर्तनकी या भांति एक वाक्यता हैं। प्रागट्य दोय वर्ष पहिले हैं। भगवत्प्रादुर्भावानंतर सुधाविर्भाव है सो शृङ्गार रसात्मक जो भगवत्स्वरूप तिनकी
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