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________________ Ra mnmommamRam - । प्राप्तहैं । यद्यपि अत्यंत नैकल्य हैं भक्तिको आश्रित हैं। तब सामीप्यमुक्तितें कहा सालोक्यमुक्तिमें अक्षरानंदानुभव हैं सो गंडस्थलयुक्त जो अधर ता रसके आगे अन्यरस तुच्छ हैं । तब सालोक्यमुक्तिकरिके कहा । सायुज्यमुक्तिमें ब्रह्मानंदानुभव है। सो हास्यपूर्वक जो अवलोकन तामें भक्तिरस है। याके आगे ब्रह्मानंद तुच्छ है । “जले निमग्नस्य जलपानवत् ” तब सायुज्यमुक्तिसों कहा “वीक्ष्यालकावृतमुखं तव कुंडलथि गंडस्थलाधरसुधं हसितावलोकम् ॥” इति वाक्यात् । जब ऐसो भक्तनको भाव देखेंहैं, हैं आत्माराम; तोहू रमणकिये । “आत्मारामोप्यरीरमत्” इति । ये अष्टस्वरूपको निर्णयकिये हैं । ये आठों स्वरूप धर्मी धर्मी जानिये । और गोदके ६ छः स्वरूप हैं। तहाँ दशमके सप्तमाध्यायमें “यच्छृण्वतोपैत्यरतिवितृष्णासत्त्वं च शुद्धयत्यचिरेण पुंसः । भक्तौ हरे तत्पुरुषे च सख्यं तदेव हारं वद मन्यसे यदि ॥" ह्यां ये राजाके पांच प्रश्न हैं । तहाँ शुकदेवजी कहें इन लीलाके श्रवण पहिले श्रीमातृचरणको निरोध किये हैं। सो लीला कहत हैं। सो शकटभंजनलीला हैं। तीन महीनाके भये तब औत्थानिक लीला हैं यह लीला श्रीदारकानाथजीके पासके ठाकुरजी श्रीबालकृष्णजी हैं तहाँ यह लीला प्रगटहैं और लीला गुप्तहैं । और श्रीमथुरानाथजीके पासके श्रीनटवरजी हैं तहाँ तृणावर्त्तके प्रसंगकी लीला प्रगटहैं। वर्ष एकके भये हैं या लीलाके श्रवणतें आतिकी निवृत्ति होय और श्रीनवनीतप्रियजीके पास श्रीबालकृष्णजी तथ श्रीमदनमोहनजी हैं। तहाँ जंभालीला तथा सत्त्वशुद्ध यह लीला प्रगट हें। या लीलाके श्रवणतें भक्ति होय। वितृष्णा निवृत्त होय सत्त्व जो अन्तःकरण ताकी शुद्धि होय । और श्रीगोकुल -
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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