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________________ दान PRECEDEO - होय तो करतलको स्पर्श न होय तब आगम सूचित होय || ये वाक्य श्रवण करि भक्तनकों एक बेर तो महाचिन्ता भई प्रभु कहा त्याग किये फिरि वाक्य विचारे तब सुमध्यमा यह पद हैं। ता करिके भक्तनको भाव देखि मोहित भये । यह जानके तब श्रीमुख देखत ही संपूर्ण श्रीअङ्ग गौर देखें तब तन्मयता निश्चय भई ता पीछे चरणारविन्दमें पादुकाको प्रदर्शन भयो ये अंतराय है भूमिको स्पर्श नहीं जो अन्तराय होय ताको स्पर्श समान है जैसे मोजा अंगराग लगायें होंय चरणारविन्दकों तब जो स्पर्श करिये तो स्पर्शतो चन्दनको भयो ये अन्तराल हैं भूमिको स्पर्श नहीं है । जो अन्तराय होय ताको स्पर्श समान हैं। जैसे मोजा अंगराग लगाये होंय तो चरणारबिन्दको तब जो स्पर्श करिये तो चन्दनको भयो पर वह अङ्गराग चरणारविन्दही है यह अन्तराय मात्रहीं हैं पर अंतराल नहीं। काहेत?मध्य अवकाश नहीं । तातें पादुका अन्तराल हैं तातें ये वाक्य व्यंग हैं वाक्य पर्यवसायी मत होय यह निष्कर्ष वाक्यमर्यादा हैं चरणारविन्द साधन भक्तिरूप हैं। ताते मर्यादा जो हैं सो भक्तिसंवलित होय तोभक्त स्वीकार करें हैं और भक्तसंवलित मर्यादा न होय तब स्वीकार नहीं तातें वाक्य जब श्रीअङ्गको सुखद होय तब स्वीकार करिये। अतएव दक्षिण चरणारविन्दकी अंगुरीको स्पर्शमात्र पादुकाको है ऐसे चरणारविन्दके दर्शनतें । दास्यकी स्फूर्ति भई । तब फलरूप जो भक्ति श्रीमुख ताको दर्शन भयो।तब दास्य रूपजोधर्म ताके आगे चतुर्विध जो मुक्ति सो तुच्छ है अलकावृत श्रीमुख देखिकें सारूप्य मुक्तिको प्राप्ति जो अलक सो भक्तिको आश्रय करतहैं । तब सारूप्यमुक्ति करिके कहा कुंडल योग सांख्यरूप होय सामीप्यमुक्तिके. Mistane - R OMANTRA समHIN D EEPRADESH
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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