SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ mam mNTRE manarmananda स्वीकार है सो गायनको आह्वान सुधादानार्थ है “वमिणस्तबकधातुपलाशैवद्धमल्लपरिवर्हि विडंबः । कहिचित् सबल आलि सगोपैः समाह्वयति यत्र मुकुंदः ।। ” यह अलौलिक वेष देखकें नदीनकोंहू स्पृहा भई “तर्हि भग्नगतयः सरितौवैः' इति वेणुनाद वामाश्रित होय तो करतहैं ताहि दक्षिण श्रीबाहुमें बाजूबंद नहीं सिंहासनपर ठाढ़े हैं दिशिखि तकिया हैं सो कटिताईको स्पर्श कियो है सो तकिया नहीं किंतु आलंबन उद्दीपन दोऊ विभाव हैं। किंच ललित त्रिभंग ग्रंथके मंगलाचरणमें आत्मनिवेदन कह्यो है ताको आशय जो श्रीमदाचार्यजीकों श्रीगोकुलमें ब्रह्मसंबंधकी आज्ञा भई है सो याही स्वरूप करिके हैं "नमः पितृपदांभोजरेणुभ्यो यन्निवेदनात् । अस्मत्कुलं निष्कलंक श्रीकृष्णनात्मसात्कृतम्॥” और श्रीमधुराष्टककोहूं प्रागटय याही समयके स्वरूपको हैं पधारतही ब्रह्मसंबं की आज्ञा किये सो श्रीमुखको दर्शन पहलेही भयो याते "अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् । हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥” ताते मधुराधिपह यही स्वरूप जनिये ॥ ____अथ श्रीमदनमोहनजीको स्वरूप फलप्रकरणकी प्रथमाध्यायकी लीला प्रगट और प्रकरणकी लीला गुप्त हैं वेणुनादकारीके भक्तनको आकर्षणकिये तब भक्तनप्रति जो कहें “स्वागतं वो महाभागाः प्रियं किं करवाणि वः । ब्रजस्यानामयं कच्चिद्व्तागमनकारणम् ॥रजन्येषा घोररूपा घोरसत्त्वनिषेविता। प्रतियात ब्रजं नेह स्थेयं स्त्रीभिः सुमध्यमाः॥” ये गमनवाक्य हैं सो याही स्वरूपकरिके हैं दक्षिण श्रीहस्तकी अंगुरी मध्यमा तथा अनामिका इन दोऊनसों करतलको स्पर्श है। तातें गमनभय करत wanload %3
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy