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TARANRAINRHARI
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अंगुलीनकी स्थिति हैं ताको आशय जो मर्यादाकी स्थिति हैं। सो पुष्टिको आश्रय करत हैं। “पुष्टिभक्तिस्थितिं कृत्वा मर्यादां च तदाश्रिता” इति वाक्यात् । कटि तथा श्रीवानमिति यातें जो और पात्रमें रसस्थापन न होय तब और पात्रमें न आवे तब भरित पात्रनमें रस आ3 "रसभरितं पात्रं नामितमन्यत्र तं रसं कर्तुम्” वेणुके रंध्र ७ सातको स्वरूप धर्म ६ विशिष्टधर्मी १ दक्षिण श्रीहस्त अभय करत हैं भजन विर्षे ३ प्रश्नको उत्तरदेय भक्तनके भजनकी स्तुति किये ऐसो भजन किये जो बहुत काल पर्यंत भजन तुम्हारो करिये तोहू पार न आवे । “न पारयेहं निरवद्य-” तर्जनीको अंगुष्टको स्पर्श है मध्यमा अनामिका कनिष्टा ये अर्द्ध हैं। ये नृत्यको भाव हैं। “ यतो हस्तस्ततो दृष्टियतो दृष्टिस्ततो मनः । यतो मनस्ततो भावो यतो भावस्ततो रसः ॥” यह नित्य सामयिक नृत्य समयको स्वरूप हैं, याते रातोत्सवको प्रकार ह्यांई जानिये वेणुस्थिति दोऊ श्रीहस्तके अवयवमध्यमें होय दृष्टि दक्षिणपरावृत्त होय भूमि पर कृपा अवलोकन हैं, वेणुनाद ५ प्रकारको हैं तामें यहां दक्षिण हैं स्त्रीपुरुष सबनकों भावोदोधक हैं। "देवांगना उच्चैरधस्तिरश्चां वामपरावृत्तदेवस्त्रीणाम् । स्त्रीणां पुरुषाणां च दक्षिणः समतया सर्वेषामचेतना " या भांति ३तिनको स्वरूप कहा । ताको अभिप्राय-रूप,रस, गंध,स्पर्श, शब्द, तेज, जल, पृथ्वी, वायु, आकाश, पञ्चदृष्टि संयुक्त हैं जैसेंही वेणुनाद पंचदृष्टिसंयुक्त हैं तैसे पृथिव्यादिककी तन्मात्र पांच प्रकारको वेणुनादहू प्रिय हैं ताको स्वरूप रूप नील प्रिय हैं शृङ्गाररूपत्वात् रसोनवनीतस्य सुधासंबंधत्वात् गंधस्तुलस्या दिव्यगंधत्वात् स्पर्शःस्त्रीणां सुधाधारत्वात् शब्द वेणुको प्रथमसुधाधारत्वात् ५ मल्लकाछको
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