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________________ मा अच्छिद्र है ताको आशय जो शंख हैं सो जलको तात्त्विक रूप हैं "अपां तत्त्वं दरवरम्” इति वाक्यात् । जितनी वृष्टि भई सो ता जलको आधिदैविक यह शंख हैं तामें सब वृष्टिके जलको आकर्षण करें जलको आधिदैविक संबन्ध भयो तब भोगयोग्य भयो तातें याको पान किये अतएव वाम श्रीहस्तमें हैं झारी बांई ओरही हैं। याहीतें इंद्रको अपराध क्षमाकर प्रसन्न भये । नंदादिप्रभृति भोगसामग्री समर्प इंद्र जलकी सेवा किये और परिकर सब एकत्र किये, न तु ब्रह्मा । जैसे प्रक्षिताध्यायमें वत्ताहरण लीलाविषे परिकर भगवानते जुदो किये। तातें अप्रसन्न भये। और इंद्र परिकर इकठोरो किये। तथा जलकी सेवा किये। ताते प्रकार ये कमलपर ठाड़े हैं। ताको आशय जलको अनुभव कारके कमलके बाहर आये तब विकाश जो आमोद लक्ष्मीनिवास ये तीन गुणको आरंभ भयो तैसे ब्रह्मानंदको अनुभव कारकें बाहिर जब आये तब भजनानंदको अनुभव भयो तहां इनके अवयवको विकाश और वाको रूप जो पुष्प तिनमें अर्थ सो आमोद तब प्रभु उत्तरीय पर विराजे यह लक्ष्मीनिवास । ' अथ श्रीगोकुलचंद्रमाजीको स्वरूप फलप्रकरणके चतुर्थाध्यायकी लीला प्रगट और प्रकरणकी लीला गुप्त हैं। “साक्षान्मन्मथमन्मथः ” इति वाक्यात् । अपनें स्वरूपमात्र करिके कंदर्प जो कामदेव हैं ताकों जीते “सालिकुलं कमलकुलं जितं निजाकारमात्रतो जगति । प्रकटातिगूढरसभरजितोऽभवत्कुसुमशर कोटिः॥” इति त्रिभङ्गललितग्रंथ हैं। सो इनहीं स्वरूपको वर्णन है तहां त्रिभंग सो तीन अंग वक्र हैं। पद, कटि, ग्रीवा; ये तीन अंग तहां पद तो वाम चरणको स्थापन सो पुष्टिको स्थापन है। दक्षिण उन्नत है सो मर्यादाको उल्लंघन हैं। यत्किंचित् । -
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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