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राज
माध्यायकी लीला प्रगट है और प्रकरणकी लीला गुप्त है। अतएव चतुर्भुज ब्रजमें प्रमेय बल कार हैं रहस्यलीलाविषे सखीवृन्दमें मुख्य स्वामिनी विराजत हैं। तहां भगवत्संबंधी सखी सम्मुख बैठी हैं। इतने प्रभु पधारे । तब स्वकीय सखीको समस्यासों बरजी। पीछेतें परि दोऊ श्रीहस्तसों नेत्र मीच दूसरे दोय श्रीहस्तसो वेणुकूजनकार भाषणकिये जो कौन हैं । यों जताये जो वेणु कूजनते प्रेमोत्पत्ति है। " चुकुञ्ज वेणुम्" इति वाक्यात् । “ भूवल्लीसंज्ञयादौ सहचरिनिकरे वर्जयित्वा स्वकीयां पश्चादागत्य तूष्णीमथ नयनयुगं स्वप्रियाया निमील्य । कोस्मीत्येतद्वचनमसकृदेणुना भाषमाणः पातु क्रीड़ारसपरिचयस्त्वां चतुर्बाहुरुचैः ॥ ” याहीतें आयुध धारणकोहू प्रकार ह्यां या भांति निचले दक्षिण-श्रीहस्तमें पद्मसों प्रिया पाणि है नेत्रनिमीलन छुड़ावत हैं ऊपर दक्षिण श्रीहस्तमें गदा है सो प्रिया अद्भुतलीला देखि आश्लेष करत है। ऊपर वाम श्रीहस्तमें चक्र है सो प्रियाके कंकणादिकके स्पर्शते क्षतसूचित होत हैं । निचले वाम श्रीहस्तमें शङ्ख है सो प्रियाके सम्मुखतें ग्रीवाके स्पर्श होत हैं। याहीतें ह्यां आयुधके स्वरूप मूर्तिवंत चार ४ हैं प्रियाके आविर्भावविशिष्ट स्त्रीरूप हैं । अतएव पीठक चौखूटी है । प्रियाविशिष्ट है ॥ - अथ श्रीगोवर्द्धनधरको स्वरूप साधनप्रकरणकी लीला प्रगट हैं और प्रकरणकी लीला गुप्त हैं। श्रीगोवर्द्धनजीके उद्धरणको स्वरूप आपु तो हरिदासवर्य हैं । जब प्रभु पधारें तब आपतें ठाढ़े होयरहैं । तो दास्यधर्मत्वात् और डांडी चाहिये सो कबहु प्रभु वाम श्रीहस्तमें ऊंचोकरें जब प्रभु वेणु नाद करे तब आलंबन सो आश्लेष है तब इनके श्रीहस्तमें शङ्ख हैं सो
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