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________________ am S - पुरुष रूप च्यार हैं और मर्यादा पुष्टि भेद करिकें ऐश्वर्यादिकके स्वरूप मिलि ६ हैं । याही पीठक मोल हैं । मुकुटपर ओढ़नी हैं । अथ श्रीविठ्ठलेश रायजीको स्वरूप फलप्रकरणके द्वितीयाध्यायकी लीला प्रगट हैं और प्रकरणकी लीला गुप्त हैं। "पुनः पुलिनमागत्य कालिंद्याः कृष्णभावनाः” इति वाक्यात् कालिंदीस्वस्वरूपको दर्शन कराये तब भक्तनकों भावस्फूर्ति भई "भगवान् विरहं दत्त्वा भाववृद्धिं करोति हि । तथैव यमुनास्वामिस्मरणात् स्वीयदर्शनात् ॥” इति च । प्रथम मुख्य स्वामिनीविर्षे आसक्ति भरिकरिकें तद्रूप करिके गौर तो इतेही फिरि श्रीयमुनाजीको भगवद्भावाविष्ट स्वरूप देखिकें मोहितभये तदनन्तर सात्त्विक भावाविष्ट कमल सदृश जे नेत्र तिनके कटाक्ष करिके श्यामताहू स्वरूपवित्रं प्रदर्शित होत हैं तातें गौर श्याम हैं " स्वामिनीगौरभावस्य स्वस्वरूपं प्रपश्यतः। कटाक्षैविट्ठलेशस्य श्यामताचित्रितं वपुः॥” इति शृङ्गार रसात्मक भगवत्स्वरूप संयोग वियोग भेद करिके उभयात्मक विरुद्ध धर्माश्रय ब्रह्मतें स्वरूपविर्षे उभय भावकी स्थिति हैं तेहू गौरश्याम हैं ।“ रसस्य द्विविधस्यापि स्वरूपे बोधयन् स्थितिम् । ऐक्यं विरुद्धधर्मत्वागौरश्यामः कृपानिधिः ॥” रसपरवशतेही कटि भाग पद दोऊ श्रीहस्त हैं । “समपादाम्बुजं सूक्ष्म कटिलग्नभुजद्वयम् । किरीटिनं लसद्वकं विट्ठलेशमहं भजे ॥” अतएव वाम श्रीहस्तमें सच्छिद्र शङ्ख हैं। ध्वनिते विरुद्ध धर्माश्रय भगवत्स्वरूप हैं । यह द्योतित करत हैं । भक्तवृन्द जो निजांगीकृत हैं तिनके उभय भाव करि गौर श्याम हैं । यह योतित करत हैं। अतएव एक चरणारविन्दमें आभरण हैं एक नहीं। | अथ श्रीद्वारकानाथजीको स्वरूप प्रमेयप्रकरणकी सप्त - - INDE
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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