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________________ सो स्थानवरसके स्थापुरुषार्थक इतिया सो स्थायीभाव प्रत्येक रसनके प्रगटकरिव्रजीयनविर्षे उद्बोधक करनों नवरसके स्थायीभाव तो नव होंय भक्तिरसको स्थायीभाव रति हैं चतुर्विध पुरुषार्थके स्थायीभाव अलक हैं च्यारों अलकमें हैं तं गोरजश्छुरितकुन्तलं" इति।या प्रकार १४ चौदह रसके स्थायीभाव जानिये और आयुध धारणको आशय-शङ्ख चक्र गदा पद्म या क्रमसों धरें सो मधुसूदन स्वरूप कहावें । तत्र कहे हैं पुष्टिमें तो-" मधुसूदनरूपत्वं गजराजविहारिणः” इति वाक्यात् गजवत् विहारलीला है निचले दक्षिण श्रीहस्तमें शंख है ताको अवांतर भाव आसुरगर्वनिवृत्तिः “ विष्णोर्मुखोत्थानिलपूरितस्य यस्य ध्वनिर्दानवदर्पहन्ता” इति । शंख अंबुफल कहे हैं तातें आयुध मुख्य भाव तो ग्रीवाकी आकृति ऊपर दक्षिण श्रीहस्तमें पद्म है ताके अवांतर भाव तो जापर धरेंतापर चौदह भुवनको भार परयो तब दबि जायभुवनात्मकं कमल-'इति वाक्यात् जैसे काहूपर एक भीति परे सो दुबिजाय ताकी कौन व्यथा तैसे चौदह भुवन पड़ें तो कहा कहवेमें आवै तातें पद्म आयुध हैं। मुख्य भाव तो श्रीमुखकी आकृति ऊपर वाम श्रीहस्तमें गदा है ताको अवांतर भाव तो अस्त्रको तेज निवारण करत हैं अस्त्रतेजः स्वगदया” इति । मुख्य भाव तोभुजाश्लेष हैं अवष्टंभ हैं निचले वाम श्रीहस्तमें चक्र है ताको अवांतर भाव तो जाकों मुक्ति देनी होय ताकों चक्रसों मारें "ये ये हताश्चक्रधरेण राजन्” इति । और मुख्य भाव तो कङ्कणाकृति है। “प्रियाभुजाश्लिष्टभुजः कंकणाकृतिचक्रकः । कम्बुकण्ठो धृत भुजो लीलाकमलवेत्रधृक् ॥” मुख्य भावके आशयको प्रमाण लिखे हैं दिवसमें वन गमन तब होत है जब ये पदार्थ भाव सूचक हैं । याहीतें आयुधके स्वरूप मूर्त्तिवन्त भगवद्भावाविष्ट madamasonsuman
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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