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दक्षिणेन करेणासौ मुष्टीकृत्य मनांसि नः॥ वामं करं समुद्धत्य निहते पश्य चातुरीम् ॥” इतिच । और करणार्थ ही निकुंजमंदिरके द्वार ठाड़े हैं उभय विभावके आच्छादनार्थ ओढ़नी ओढ़े हैं। याहीतें पीठक चौखुटी हैं। पंचदृष्टिमें सम्मुख दृष्टि हैं। अब श्रीनवनीतप्रियजीको स्वरूप ह्यां बालभाव मुख्य हैं । तातें प्रमाण प्रकरणकी लीला प्रगट हैं । और प्रकरणकी लीला गुप्त हैं। अतएव गुप्तसरसको प्रकार बालभाव विषे हैं । निरावृत्तिस्वरूप रसाध्याय कहैं । याहीतें तनीया धोती सूथन काछनी पहिरें। "जानीत परमं तत्त्वं यशोदोत्सङ्गलालितम् ॥ तदन्यदिति ये प्राहुरासुरांस्तानहो बुधाः॥"श्रीहस्तविषे नवनीत हैं सोई गायनविषं सुधाका जो दान हैं सो सारभूत नवनीत हैं । श्रीहस्तमें राखवेको तात्पर्य यह है जो सुधासंबंध विना भगवद्भोगयोग्य नहीं। “योङ्गनादर्शनीयकुमारलीला" इत्यत्र अंगं नयतीत्यंगना" भक्त सेवानुकूल हैं। प्रभु कुमार हैं कुत्सितो मारो यस्मात् अतएव मदनगोपाल नाम याईते हैं । अथ श्रीमथुरानाथजीको स्वरूप प्रमेयप्रकरण प्रथमाध्यायकी लीला प्रगट और प्रकरणकी लीला गुप्तहैं। अतएव ब्रजमें चतुर्भुज स्वरूप कौन प्रकार नंदकुमार तो द्विभुज हैं परंतु पुष्टिस्वरूपमेंहूं चतुर्भुज हैं । ताको आशय पुष्टिकार्यरूप क्रियाचतुष्टय हैं स्वानंददान १ स्वानंददानविषे जो प्रतिबंध ताको निवारण २ स्वसेवा ३ आधिदैविक भावको परंपराउद्बोधन ४, तहां स्वानंददान तो ब्रजमेंही पधारत हैं तब श्रीमुखामृत लावण्यको पान करावत हैं प्रतिबन्धको निवारणसों विरहजन्य जो न्याय ताको शमन २ स्वसेवा सन्ध्या भोगादिक को स्वीकार आधिदैविक भावको परम्परा उद्बोधक सो वनमें चतुर्दश रसकी लीला किये
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