________________
-
-
गीताको विस्तार श्रीभागवत सोऊ फलरूप है “ गायत्री बीज वेदो वृक्षः श्रीभागवतं फलम् इति वाक्यात् । श्रीगीता श्रीभागवततें प्रगटभयो ऐसो जो पुष्टिमार्ग सोहू फलरूप है पुष्टिकों आविर्भाव श्रीअंगते है “पुष्टिं कायेन निश्चयः” इति वाक्यात् । पुष्टिहू फलरूप है ताते फलप्रकरणमें “षोड़श गोपिकानां मध्ये अष्ट कृष्णा भवन्ति” यातें अष्टस्वरूपको ध्यान | आवश्यक है स्वरूपभावनातें फलप्रकरणमें प्रमाण प्रमेय साधन फल ये च्यारों प्रकरणकी लीला फलप्रकरणमें हैं। "कस्याश्चित् पूतनायन्त्याः " इत्यादि । तहां यह पूर्वपक्ष होय जो भक्तकृत लीला है भगवत्कृत नहीं, ताको समाधान यह जो कृति भक्तनकी हैं सो सब भगवत्कृतही हैं । "तन्मनस्कास्तलापास्तद्विचेष्टास्तदात्मिकाः । तद्गुणानेव गायन्त्यो नात्मागाराणि सस्मरुः॥” इत्यादि । तच्छन्दकरिके भगवल्लीला जानिये, तहाँ प्रथम स्वरूपभावना, पछि लीलाभावना, पीछे भावभावना करिये । “ स्वरूपभावना लीलाभावना भावभावनाच ” इति वाक्यात् प्रथम स्वरूपभावनाको अर्थ स्वरूपस्थितिभावना | तहाँ श्रीजीस्वरूपात्मक श्रीभागवतपुस्तकनाम लीलात्मक, श्रीभागवत प्रथमस्कंध द्वितीयस्कंध दोऊ चरणारविन्द हैं, तृतीयस्कंध चतुर्थस्कंध दोऊ ऊरू, पञ्चमस्कंध षष्ठस्कंध दोऊ जङ्घा, सप्तमस्कंध दक्षिण श्रीहस्त, अष्टमस्कंध नवमस्कंध दोऊ स्तन, दशमस्कंध हृदय, एकादशस्कंध श्रीमस्तक, द्वादशस्कंध वामश्रीहस्त, तहां दक्षिण श्रीहस्तकी मूंठी बांधि अंगुष्ठको प्रदर्शन करावत हैं यातें भक्तनके मनको आकर्षण कारके वामहस्त उन्नत करिकें भक्तनको आकर्षण करत हैं “ उत्क्षितहस्तः पुरुषो भक्तमाकारयेत्पुनः।।