SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ INDORE ORTOR TRADE - - दीक्षायाः कारणं तत्र स्वेच्छा प्राप्ते च सद्गुरौ ॥” सगरु चाहिये "कृष्णसेवापरं वीक्ष्य दंभादिरहितं नरम् । श्रीभागवततत्त्वज्ञं भजेजिज्ञासुरादरात् ॥” इतने लक्षण होय तो हू निष्कलंक श्रीआचार्यजीको कुलहै तातें यह पुष्टिमार्गके उपदेष्टा गुरु आपही हैं और दूसरे गुरुसों पुरुषोत्तमकी प्राप्ति नहीं। “ नमः पितृपदांभोजरेणुभ्यो यनिवेदनात् । अस्मत्कुलं निष्कलङ्क श्रीकृष्णेनात्मसात्कृतम् ॥ ” मंत्रोपदेशहू लीजिये सो शरणमंत्र पीछे निवेदनमंत्र, नवधा भक्ति ये दोऊ मन्त्रनकरिकें होते हैं नवधा भक्ति बिना प्रेमलक्षणा भक्ति न होंय, प्रेमलक्षणा |विना पुरुषोत्तमकी प्राप्ति नहीं "विशिष्टरूपवेदार्थफलं प्रेम च साधनम् । तत्साधनं च नवधा भक्तिस्तत्प्रतिपादिका ॥" मन्त्रोपदेश पीछे भजनहू कारये सो श्रीकृष्णचन्द्रको ही करिये। सारस्वतकल्पमें प्रागट्यहै तिनको पूरण वेई हैं-"कल्पं सारस्वतं प्राप्य बजे गोप्यो भविष्यथ" और कल्पमें श्रीकृष्णावतार पूर्ण नहीं। “हरेरंशाविहागतौ । सितकृष्णकेशौ ” इति च । और श्वेतवाराहकल्पमें अर्जुनकों गीताको उपदेश कियेवा समें संकर्षणव्यूहमें पूर्ण पुरुषोत्तमको आविर्भाव हो “कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ” ॥ इति वाक्यात् गीता सर्वदा तो मोक्षके लिये हैं भक्तिके लिये नहीं "कल्पेऽस्मिन्सर्वमुत्त्यर्थमवतीर्णस्तु सर्वशः” इति वाक्यात् । तातें निष्कर्ष यह जो सेवनीय कथनीय भजनीय श्रीकृष्णचन्द्रही हैं। जे सारस्वतकल्पमें पूर्णको प्राकट्य है तेही श्रीभागवतमें लीला पूर्ण किये हैं और गीताउपदेशमेंहू ५७४ वाक्य कहे हैं सोऊ पूरणके आवेशसों कहे हैं ताते भक्तिशास्त्र सो गीता श्रीभागवत हैं। श्रीकृष्णफल रूपके वाक्यतें गीता फलरूप और - । -
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy