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| आशय है और दूसरे चैत्रकी शुद्ध प्रतिपदामें उत्सव माननों । ऐसो समयमयूख प्रभृतिनको अभिप्रायहै तासू जा देशमें जैसो शिष्टाचार होय तहाँ तैसो माननो । या बाबत स्वमार्गीय ग्रन्थनमें कछू विशेष लेख नहीं है ॥२४॥
अथ रामनवमी निर्णय। चैत्र शुद्ध नवमी रामनवमी, सो उदयात् लेनी । और दोय | नवमी होंय तो पहले नवमी के दिन उत्सव माननो । और नव|मीको क्षय होय तो विद्धा नवमीके दिन उत्सव माननो । और दशमीको क्षय होयकें व्रतके दूसरे दिन पारणाके लिये दशमी न रहती होय तोहू विद्धा नवमीके दिन उत्सव माननो ॥२५॥
अथ मेषसंक्रांति निर्णय। मेषसंक्रातिको पुण्यकाल । संक्रांति जा बिरियां बैठे ताटू दश घड़ी पहले और दश घड़ी बैठे पीछे जाननो । तामेहूँ जो जो घड़ी संक्रांतिके पासकी होय सो सो अधिकीअधिकी पुण्य काल जाननों । और सूर्यास्त भये पाछे संक्रान्ति अर्द्धरात्रि पहले बैठती होय तो वा दिना मध्याह्न पीछे पुण्यकाल जाननो। और अर्द्धरात्रिसूं पीछे बैठती होय तो दूसरे मध्याह्न पहिले दोय प्रहर पुण्यकाल जाननों । और बरोबर मध्य रात्रिके समय संक्रान्ति बैठती होय तो पहिले दिना मध्याह्नसू पीछे पुण्यकाल
और दूसरे दिन मध्याह्न पहिले दोय प्रहर पुण्यकाल । ऐसे दोऊ दिना पुण्यकाल बरोबर जा दिना सौकर्य होय ता दिना माननों ॥२६॥
अथ श्रीमदाचार्योंका प्रादुर्भावोत्सव निर्णय । वैशाख कृष्णा एकादशी श्रीमहाप्रभूनको जन्मोत्सव । सो
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