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एकादशी उदयात् लेनी । और दोई एकादशी होंय तो पहली एकादशीके दिन उत्सव माननो । एकादशीको क्षय होय तो विद्धा एकादशीके दिन उत्सव माननो। जा दिन व्रत करनों ता दिन उत्सव माननो। ऐसो आग्रह नहीं, याही प्रमाणे सातों बालकनके तथा सब गोस्वामि बालकनके जन्मादिक उत्सवनकी सब तिथी लेनी ॥२७॥ ___ अब वैष्णवनकों जानिबेके लिये सातों बालकनके उत्सव लिखतहूँ-श्रीगिरधरजीको उत्सव-कार्तिक सुदि द्वादशी। श्रीगोविन्दरायजीको उत्सव-मार्गशिर वदि अष्टमी । श्रीबालकृष्णजीको उत्सव-आश्विन वदि त्रयोदशी । श्रीगोकुलनाथजीको उत्सव-मार्गशिर सुदि सप्तमी। श्रीरघुनाथजीको उत्सव-कार्तिक सुदि द्वादशी । श्रीयदुनाथजीको उत्सवचैत्र सुदि षष्ठी । श्रीघनश्यामजीको उत्सव-मार्गशिर वदि त्रयोदशी । श्रीमहाप्रभूनके ज्येष्ठ पुत्र श्रीगोपीनाथजीको उत्सव आश्विन वदि द्वादशी ॥ इन सब जन्मोत्सवनमें तिथी उदयात् लेनी । और जो वह तिथी दो दिना सूर्योदय समय होय तो | पहले दिन उत्सव माननो और वा तिथीका क्षय होय तोक्षयके | दिन ही उत्सव माननों। यह निर्णय तो मूलग्रन्थनमें दिखायोही है। और इन सब उत्सवनमें कछु विशेष निर्णय नहीं है। तातूं ये उत्सव संस्कृत निर्णय ग्रन्थनमेंहूँ जुदे लिखे नहीं है। और मूलपुरुषादिकनमें प्रसिद्धहू है ॥२८॥
अथ अक्षयतृतीया निर्णय। । वैशाख सुदि तृतीया । सो तीज उदयात् लेनी । और दोय तीज होय तो पहली तीज माननी और तीजको क्षय होय तो विद्धा तीजके दिन उत्सव माननो ॥२९॥