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RANDIDRESSED
MANOMINDIMARIES
अथ दोलोत्सव निर्णय। फाल्गुन शुद्ध पौर्णिमाके दिन अथवा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र जा दिन होय ता दिना दोलोत्सव माननो । सो उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र पिछली पहर रात्री लेके सूर्योदय होय तहाँ ताई चाहे तब आयो चहिये । केवल उदयात् नक्षत्रको आग्रह नहीं। और पौर्णिमा पहली उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र आवतो होय तो शुद्ध पौर्णिमाके दिन दोलोत्सव माननो।और दोय पून्यों होंय तो पहली पून्योंके दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र होय तो वा दिन दोलोत्सव करनों । और दूसरी पौर्णिमाके दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र होय तो ता दिन दोलोत्सव करनों। और दोई पूर्णिमाके दिन उदयात् नक्षत्र होय तो पहले दिन दोलोत्सव माननो। और पूर्णिमाको क्षय होय और वा दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र होय तो वा दिन दोलोत्सव करनो। और पूर्णिमा पीछे प्रतिपदा प्रभृतिम उत्तराफाल्गुनी आवे तो ता दिन दोलोत्सव माननो । और सो नक्षत्र दो दिन उदयात् होय तो पहले दिन उत्सव माननो। और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रको क्षय होय तोक्षयकेही दिन दोलोत्सव करनों।
और पौर्णिमाके दिन ग्रहण होय और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र दूसरे दिन होय तो पूर्णिमाके दिन दोलोत्सव करनों । ग्रहण होय तब नक्षत्रको आग्रह नहीं ॥ २३ ॥
अथ संवत्सरारम्भ निर्णय।। - चैत्र शुद्ध प्रतिपदा सम्वत्सरोत्सव । सो प्रतिपदा उदयात् | लेनी । और दोय प्रतिपदा होंय तो पहली प्रतिपदाके दिन उत्सव | माननों। और प्रतिपदाको क्षय होय तो विद्धाप्रतिपदाके दिन उत्सव माननों। और दो चैत्र होंय तो पहले चैत्रकी शुक्ल प्रतिपदाके दिन उत्सव माननो । ऐसो निर्णयसिन्ध्वादिग्रन्थनको