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प्रातः कालविषे साँझको भद्रारहित पूर्णिमा न होय तो आवती पिछली रातर्फे प्रतिपदामें दंडारापण करनो। और वा दिन ग्रहण होय और ग्रस्तोदय होय तो ग्रहण छूटे पीछे दंडारोपण करनो। और ग्रस्तोदय न होय तो ग्रहणलगे पहले दंडारोपण करनो॥२०
अथ श्रीमगोवर्द्धनधरागमनोत्सव निर्णय । फाल्गुनकृष्ण सप्तमी श्रीनाथजीको पाटोत्सव । सो सप्तमी उदयात् लेनी । और दोय सप्तमी होंय तो पहिली सप्तमीके दिन उत्सव माननो। और सप्तमीको क्षय होय तो विद्धा सप्तमीके दिन उत्सव माननो ॥२१॥
अथ होलिकादीपन निर्णय। फाल्गुन सुदि पुन्यो होलिकोत्सव । सो पुन्यो प्रदोषव्यापिनी लेनी। भद्रा सो विष्टिको स्वरूप राखीपुन्योंके निर्णयमें लिख्योहै । सन्ध्याकालके विषे सूर्यास्तसूं पीछे अथवा प्रातः कालके विषे सूर्योदयमूं पहले । और पहिले दिन सगरी रात भद्रा होय और दूसरे दिन सायङ्कालतूं पहिले पुन्यो समाप्त होतीहोय तो दूसरे दिन सूर्यास्तपीछे प्रतिपदामें ही होरी प्रगटनी । अथवा भद्रा बैठे पीछे पांच घड़ी ताँई भद्राको मुख, ताको त्याग करिके बाँकी भद्रामें ही प्रगटनी । अथवा भद्राकी तीन घड़ी छलीसों भद्राको पुच्छ, तामें होरी प्रगटे तोहू चिन्ता नहीं। और वादिन ग्रहण होय और ग्रस्तोदय होय तो ग्रहण छूटे पीछे होरी प्रगटनी। और ग्रस्तोदय न होय तो ग्रहण लगे | पहले होरी प्रगटनी । परन्तु कबहू होरी दिनमें प्रगटनी नहीं | रात्रीमेंही प्रगटनी । और जा रात्री में होरी प्रगटीजाय तामूं पहिले |दिनमें होरीको उत्सव माननों ॥२२॥
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