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अथ वैष्णवको जपको प्रकार । वैष्णवको चार प्रकारकी माला जपनी-तुलसी माला १, वर्णमाला२, करमाला ३,शुद्धकाष्ठकी माला ४।मणिका१०८सुमेरु जदो ताको आशय"शतायुर्वै पुरुषः" या श्रुतिमें शत आयको एक एक मृत्यु लेजाय अत्राव वै मृत्युर्जायते आयुर्हरति वै पुंसां इति च, कृते लक्षं तु वर्षाणि त्रेतायामयुतं तथा । द्वापरेषु सहस्राणि कलौ वर्षशतं स्मृतम्॥"या वाक्यमें सत्य युगमें लक्षवर्षकी आयुष्य कही तब एक आयुष्य सहस्र वर्ष भोगवे, त्रेतामें दश सहस्रकी आयुष्य कही तब शतवर्ष भोगवे,द्वापरमें सहस्र वर्षकी आयुष्य कही तब दश वर्ष भोगवे, कलिमें शत वर्षकी आयुष्य कही तब एक वर्षकी आयुष्य भोगवे । कलिमें सौको नियम नहीं तब पंचास होय तो छः महीना भोगवे पंचीस होय तो तीन महींना भोगवे । सूक्ष्म काल होय तो सौ पल करि भोगवे । अति सूक्ष्म काल होय तो सौ क्षण करि भोगवे । तातें सिद्धान्त यह जो आयु भोगवे विना प्राणोद्गमन होय याते आयुको कालके मुखमें ग्रास होत है ताके दोष निवारणको शत मणिका करिके शत भगवन्नाम लेय तो कालके ग्रासके दोष निवृत्ति होय भगवन्नाम करिके हरण भयो । या भांति आयुष्यको भगवन्नाम करिके हरण भयो । ताको भगवत्स्वरूप संयोग वियोग भेद करिके धर्माविविधिनः, धर्म भगवानको६। एश्वर्य,वीर्य २, यश ३, श्री ४, ज्ञान ५, वैराग्य६, ऐसे अष्टविध भगवत्स्वरूप हृदयारूढ़ होंय और सुमेरुवत्स्वरूप हृदयारूढ़ होय और सुमेरुसों मालाको सूत्र बँध्यो है तैसे भगवचरणारविन्दको मनको सूत्र बँध्यो है तो अधः पात न होय ऊर्द्धगति होय "पतंत्यधोनादृतयुष्मदंघ्रयः” इति वाक्यात् तुलप्तीकी माला
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