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मुख्य यातें दिव्य गंध है। देव भोग्य है। “पत्रं पुष्पं फलंतोयम्" इत्यत्र पत्रं तुलस्यादि । अथ च भक्तिरूपा गोविन्दचरणप्रिये" इतिवाक्यात् । याते तुलसीकी माला मुख्य १, करमाला अनामिकाके मध्यसे प्रारंभ तर्जनीके अन्त पर्यन्त दश होंय । तर्जनीके अन्तते प्रारंभ अनामिकाके मध्यसे समाप्ति या भांति गिने मध्यमाके मध्यमको । अन्तके दोऊ पर्व सुमेरु “पुष्टिं कायेन निश्चयः ” या वाक्यते पुष्टिसृष्टिको प्रागट्य श्रीअंगते हैं या सृष्टिको सेवाको अधिकार है सेवा तो करसों है । साक्षाद्विनियोग करकोही है ताते करमाला मुख्य २, वर्णमाला कखगघङ चछजझन टठडढण तथदधन पफबभम स्पाक्षर, अन्तस्थाक्षर यरलव, ऊष्माक्षर शषसह, संयोगीअक्षर ज्ञ, स्वराक्षर १६ अआ इई उऊ ऋऋ लल एऐओऔअंः सब मिलि ५० भये व्युत्-।। कमसू गिनिये तो ९० होय मिले १०० भये कचटतपय शअ ये आठ और मिलें १०८ की माला भई लक्षः ये दोऊ अक्षर सुमेरु "स्पर्शस्तस्याभवजीवः स्वरो देह उदाहृतः। ऊष्माणमिन्द्रियाण्याहुरंतस्था बलमात्मनः॥" या वाक्यतें स्पर्शा क्षर २५ शब्दब्रह्मको जीव, स्वराक्षर १६ शब्दब्रह्मकी देह, ऊष्माक्षर ४ शब्द ब्रह्मकी इंद्रिय, अंतस्थाक्षर ४ शब्दब्रह्मको बल, संयोगी अक्षर ज्ञः सो तो 'जभोः 'ये दोहू स्पर्शाक्षरही हैं। या प्रकार ब्रह्मको संबंधहै तातें वर्णमाला मुख्य है ३, शुद्ध काष्ठकी माला यातें प्रशस्त है जो जामें काहू देवताको भाग नहीं तामें सर्वेश्वर श्रीकृष्णचन्द्र हैं तिनको भाग जैसे काहूकी सत्ता नहीं तहाँ राजाकी सत्ता तैसे, अथ च वैष्णवावै वनस्पतयः” इति श्रुतेः काष्ट वैष्णव हैं । तातें यहू माला प्रशस्तहै । यातें शरणमंत्र निवेदनमंत्रके उपदेशके पीछे काष्टकी माला देतहैं वैष्णवत्वात् । भगवदीयको संग दिये जप करवेके
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