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तोऊ बड़े लोग कृपादृष्टिसों बालककी अमर्यादापर क्षमा करके वाकी प्यारी जो तोतली वाणी जामें कछु अर्थ होय वा न होय परन्तु सुनवेकी इच्छा करे है, वाकी अज्ञानता दृष्टि नहीं करें जैसे “ मधुपाः पुष्पमिच्छन्ति व्रणमिच्छन्ति मक्षिकाः ।" तैसे गुणिजन मधुप (भोरा) के समान सुगन्धही लेवेकी दृष्टि राखे हैं। और माँखी घावपर ही जाय बैठे है । तासों मोको आशा है कि पुष्टिमार्गीय सम्प्रदायके सेवक तथा भगवदीय वैष्णव जन मेरी अज्ञानता और भूलचूकको न देखेंगे और क्षमा करेंगे।
आपका
मुखियाजी रघुनाथजी शिवजी, सरस्वती भण्डार,
मथुराजी.
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