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होंहिगे । तहां यह भाव विचारनो-'कहि कृष्णदास विलास निशदिन नंद भवन हिंडोरना ॥' या वाक्यके अनुसारतें नंदालयमेंहू नित्य लीला करिब्रज भक्त निमनही हैं। - अथ श्रावण शुक्ल ११ पवित्राको उत्सव-ता दिन अर्द्धरात्रके समय श्रीठाकुरजी श्रीआचार्यजी महाप्रभुजीसों आज्ञा दीनी | जो जीवनको ब्रह्म संबंध कराओ, तब आप विनतीकरे जो जीव तो दोष भरे हैं। उनको संबंध साक्षात् चरणकमलते कैसे होइंगो ? तब आज्ञा भई जो निवेदन मंत्रही सब दोष निवृत्त होइगे । सुखेन ब्रह्मसंबंध कराओ। तब श्रीआचार्यजी महाप्रभुने | सब जीवनकी ओरतें वाही समें पवित्रारूपी वनमाला पहिराइ समुदाइसों सब अंगीकृत जीवनको संबंध भगवदंगीकृत सिद्ध होत है और एकसौ आठ गांठमणिकाकी मालातें जैसें भगवजन सिद्धहोत हैं तैसेंही एकसो आठ गांठतें भगवत्संबंधकी गाँठि दृढ़ बांधि जात हैं। यह भाव विचारनो । व्रज भक्त श्रीठाकुरजीकों पतित्वभावसों पवित्रारूपी माला गरेमें आरोपत है।
श्रावण शुक्ला १५ रक्षा बन्धन-लोकप्रसिद्ध तो ऐसे है जो भेहेन भैयाको राखी बाँधे है और सुभद्राजीने श्रीठाकुरजीको राखी बाँधी है । सो उत्सव मान्योजाय है । परन्तु भाव यह जो व्रजभक्त श्रीठाकुरजीको कुशल हृदयाभ्यन्तर विचारि एकान्तमें अनेक भावसों या पदके अनुसार रक्षा बाँधे हैं । सो पद लिखे हैं-राग सारंग ॥ रक्षा बाँधत लाल विहारी ॥ अति सुरंग विचित्र नानारंग ललना सुहथ सँवारी ॥१॥ जैसी प्रेम प्रवाह विहारिन ललिता लै सनगारी ॥ कुन्दन सहित जराई जगमग बाँधत प्रीतम प्यारी ॥२॥ अति अनुराग परस्पर दोऊ रहत निहारि निहारि निहारी ॥ कृष्णदास दम्पति छबि निरखत
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