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अपनो तन मन वारी ॥३॥" व्रज भक्त सब या भाँतिसों राखी बाँधत हैं। लोकप्रसिद्ध जो गुलपापड़ी, तथा और सामग्री भोग धरें हैं। अथ और विचार, मकर संक्रांति तथा युगादि तथा षष्ट षड़गु तथा आषाढ़ी पूरनमासी इत्यादि जो पर्व उत्सव विधिमें लिखे हैं तिन सबनको ब्रजभक्त भगवत्सेवाके उत्साहसों और मिषान्तरसों मिलन सिद्ध होत है ताते लौकिक पर्वको अलौकिकमें मानि जो जो क्रिया लोक प्रसिद्ध हैं विनको भगवत्स्वरूपके संबन्धसों करत हैं। और ता दिन जो २ सामग्री लोक प्रसिद्ध ताकों आछी भाँति भावसों सिद्ध करि भगवद्विनियोग कार, अपनो जन्म सफल करि मानत हैं यह भाव विचारनो, तातें श्रीआचार्यजी महाप्रभुको प्रगटित जो मार्गसो सो केवल भावात्मक है और भाव विना क्रिया करिये सो वृथा श्रम जाननो। यह मार्ग और मार्गकी क्रिया सब फल रूपी हैं। परन्तु जब श्रीमहाप्रभु तथा श्रीमत्प्रभुको शरण सम्बन्ध दृढ़ राखिके ब्रजभक्तनके भावसों सेवा करें तब फल| रूप होय और अलौकिक लीला अनुभव वेगिही प्रभु दान करें। यामें संदेह नहीं ॥
नानाजनिप्रसृतकर्मगुणप्रबद्धजीवोपकारनिरताशिखिनः प्रणम्य । श्रीवल्लभांस्तदनुशिष्टमतानुसारिपूजोत्सवादिविषयः समुपाणि सूक्ष्मः ॥ ३ ॥ श्रीगोकुलेशभक्तेन शिवजीतनयेन वै । रघुनाथाभिधेनायं गोकुलेशः प्रसीदतु ॥ २ ॥
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१-अग्निकुमारान् ।
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