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गौरीतिथौ सुदि सुमाधवमासि वह्निषण्नन्दचन्द्रमितवत्सर आप पूर्तिम् । आचार्य्यं पादतदुपास्यसुरप्रसादात् सोऽयं क्षितावनुगृहं लभतां प्रसारम् ॥ ३ ॥ दोहा - संवत गुण र ग्रह शशी, मनहर माधवमास । तिथी अक्षय्य तृतीयावली, शुभ गुरुवार उजास ॥ १ ॥ ते दिवसे पूरण क, वल्लभपुष्टि प्रकाश । वैष्णव जानने वांचिने, थशे निशंक उल्हास ॥ २ ॥
भाव भावना आरती, उत्सव निर्णयसार । विधिवत सेवा दाखवी, यथाबुद्धि अनुसार ॥ ३ ॥ वांचकवृंद क्षमाकरी, मुज भाषाना दोष । सुज्ञ सुधारी वांचशो, घरी न मनमा रोष ॥ ४ ॥ गुणग्राहक गुणने गृहे, दुर्जन खोड़ेखोड़ । जे जननी जेवी मती, करशे तेवो तोड़ || ५ | घरघर सेवा शामनी, विधिवत थाय निर्तत | इच्छा एज रघुनाथनी, पुर्ण करो भगवंत ॥ ६ ॥
इति श्रीहरिरायजी कृत भावभावना उत्सवभावना, सेवासाहित्यभावना आदिमथुरा सरस्वती भण्डार मुखिया रघुनाथजी शिवजी संग्रहीत वल्लभपुष्टिप्रकाश तृतीय भाग समाप्त ॥