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विचारनो जो श्रीठाकुरजी ब्रज भक्तनके घर पधारिवेकी अति | आतुरतासों लीला गोपनार्थ सहजहीमें बालक मुग्धभावसों मातृचरणसों कहतहैं। सो या पदके अर्थानुसार विचारनो। राग बिलावल-"मैया रथ चढ़िहो डोलोंगो । वरघरतें सब संग खेलनको गोपसखनिको बोलोंगो ॥ १ ॥ मोहि गढ़ाइदै अति सुंदर रथ सिगरे साज बनाइ । करि श्रृंगार ताऊपर मोको राधा संग बैठाइ ॥२॥ घर घर प्रति हों जैहों खेलन संग लैहों व्रजबाल ॥ मेवा बहुत मँगाइ मोहि दै फल अति बड़े रसाल ॥३॥ सुतके वचन सुनत नंदरानी फूली अंगनमाइ ॥ सब विधि सजि हरि रथ बैठाए देखि रसिक बलि जाइ ॥४॥" या पदके भावकरि श्रीठाकुरजी रथ पर बैठि भक्तनके घरघर पांव धारि उनके सकल मनोरथ पूर्ण करत हैं। ता समें ब्रजरत्ना अत्यंत प्रीतसों अति सुस्वादु कर्कटीबीज ताके मोदक जो अज्ञातयौवना मुग्धा भक्तनके अंकुरितबीज रसरूप इत्यादि सामग्री अनेक प्रकारकी अरोगावत हैं तहां चारि भोग चारि आर्तीको प्रमाण । सों तो चतुर्विध भक्त तीन प्रकारके त्रिगुणा और एक निर्गुणाकी ओरतें जाननो। ____ अथ श्रावणवदिमें आछो मुहूर्त देखि हिडाला रोपनो।
ताको अभिप्राय यह, जो 'झूलत दोऊ कुंज कुटीर ' इत्यादि | पदके अनुसार अभिप्राय करि श्रीठाकुरजी सब व्रज भक्तनके | संग कुंजद्वारमें अत्यंत हास्य विनोद रस निमग्नता सों हिंडोरा झूलत हैं। तहां यह आशंका उत्पन्न होइ, जो कीर्तनके बीच ऐसेहू कयो है जो 'सुरंग हिंडोरनाहो रोप्यो नंद अवास॥' या| पदके भावकारि श्रीनंदरायजी तथा सब वृद्धनके सान्निध्य श्रीठाकुरजी झूलत होहिंगे तब भक्तन विषं निमगलीला कैसें रहत
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