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________________ a mmelammemommamimes । mentamans emorre जीके संग जलक्रीड़ाकों मनोरथ बहुत भयो । तिनके चित्तको आशय जानि उन आदि सब भक्तनके संग श्रीयमुनाजीविर्षे जलकीड़ा तथा नाव खेलन लीला किये। यमुना नावको 'गोपी पारावारकृतोद्यमः ' इति वचनात् । तहां जेष्टानक्षत्रको अभिप्राय यह, जो श्रीकृष्णचन्द्र नक्षत्ररूपी जो सब ब्रजभक्त तिनमें जेष्ट भक्त तिनके मनोरथतें जलक्रीड़ा किये । यह जनाइवेके लिए ज्येष्ठानक्षत्र ज्येष्ठमासको अंगीकार किए । अब महाप्रभु श्रीआचार्यजीकी आज्ञातें पहिले दिवस जलकों लाय अधिवासन करत हैं।ताको अभिप्राय यह,जो श्रीठाकुरजीकी रसात्मक जलक्रीड़ा सो तो श्रीयमुनाजी विना और कहूँ सम्भवे नहीं । तातें पहिले दिवस जल लाय पूर्वोक्त विधिसे अधिवासन करत हैं तब श्रीयमुनाजी आधिदैविक स्वरूपतें पधारत हैं। ता जलसों दूसरे दिन जलक्रीड़ा करत हैं। तहाँ शंखसों स्नान करिबेको अभिप्राय यह, जो भगवदायुधमें शंख है सो पंच महाभूतमें जलको आधिदैविक स्वरूप है । तातें शंखसों स्नान होतहैं। चन्दन गोटी पाग पिछोरा धरत हैं सो मुख्यभक्तनके श्री अंगको वर्ण है ताको अंगीकार करि ताप निवृत्त करत हैं। तथा भक्त सब श्रीठाकुरजीकों अधरामृतरूप जो शीतल सामग्री सो अरोगाय अपनों ताप निवारण करत हैं। यह भाव विचारनो । ___ अथ आषाढ़ शुक्ल २ रथयात्रा-सो लोक प्रसिद्ध तो ऐसे हैं जो श्रीजगन्नाथरायजीकें यहाँ अति उत्कर्षसों यह उत्सवकी रीति होत है । सो वहांकी रीति आपु श्री महाप्रभुजी अंगीकार किये हैं परन्तु पुष्टिमार्गके भावको विचार ऐसे हैं जो ब्रजपति पुष्टि पुरुषोत्तम ब्रजसम्बन्धी लीलाव्यतिरिक्त और कछू जानत नहीं तो मर्यादामार्गीय लीला यहाँ कैसे सम्भवे ? तातें यहाँ a bemam and
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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