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________________ 27ATNhavNER: संबंध है इनको उपदेश ले इतनोई संबंधी होय संपूर्ण संबंध तो बालक करिके ताते स्त्री तथा पुत्री पास उपदेशदेई, सृष्टि राखिबेकों तो बाधक नहीं, जब बालक न होय तब स्त्रीकों अधिकार, जब स्त्री न होय तब पुत्रीको उपदेशाधिकार, यह विवेक जानिये। याते श्रीवल्लभ श्रीकुलकोई उपदेश लेवे। औरहू विस्तार बोहोत है ग्रन्थको विस्तार बोहोत बड़ा होय जाय, तारूं कहां तांई लिखिये ॥ ___ अथ वैशाखशुक्ल ३ अक्षयतृतीया-ताको भाव यह जो तीनो यूथके साथ श्रीठाकुरजी अक्षयलीलासक्तहैं । अंखड लीला व्यतिरिक्त और कछू जानतहू नाही और चंदन पहिरिबेको अभिप्राय यह जो ग्रीष्म ऋतुमें अधिक ताप जो श्रीस्वामिनीजीके संयोग भीतर क्षण एक विरह विभ्रमको ताके निवृत्यर्थ उनको भावरूप तथा श्रीस्वामिनीजीके कुच कुंकुमाघरूप जो चंदन ताको सागलेपन करि तापकी निवृत्ति करत हैं। तहां चन्दनके कटोरामें पांच वस्तु आवत हैं। चन्दन, केशरि, कस्तूरी, कर्पूर, चोवा । ताको भाव यह जो चन्दन है सोश्रीचंद्रावलीजीके स्वरूपको वर्ण है । अरु केशरि मुख्य श्रीस्वामिनीजीके स्वरूपको वर्ण है । और कर्पूरसो अन्य पूर्वानके यूथाधिपतिको वर्ण है। अरु कस्तूरी सो आप श्रीजीके स्वरूपको वर्ण है । और चोवा सो समस्त भक्तनकों श्रीठाकुरजी विषे स्निग्ध सचिक्कण भाव ताकों आप अङ्गीकार करत । श्वेत वस्त्र सो तो अत्यंत शीतल सो ग्रीष्मऋतुमें सुखकारी है। ताको अंगीकार किये ॥ __ अथ जेष्ठशुक्ल १५ स्नानयात्रा-ताको अभिप्राय यह है सो सब ब्रजभक्तनके यूथमें कोई ज्येष्ठभक्त है । तिनकों श्रीठाकुर
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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