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________________ । - - अपेक्षत हैं। भक्तिहंसमें प्राचीन आचार्यनको स्नेह दृढ कहैं ताते स्नेह तो पुत्र तथा स्त्री पुत्री सब वंश प्रति हैं और उपदेश देनों सो नरस्वरूपते हैं ताते नरत्य आवश्यक हैं, स्नेह सो भक्ति, भाक्त तो प्रेमपूर्वक सेवा । भज धातुको अर्थ सेवा, क्तिन् प्रत्ययको अर्थ भाव । “ भावे क्तिन्” सो भाव-"रतिर्देवादिविषया भाव इत्यभिधीयते ।"भाव रति सो रतिस्नेहमें प्रीतिये एकके नाम हैं सो प्रेमपूर्वक सेवा करनो तोबजरत्नाके भाव सो हैं सो तो सब वंशपरत्व हैं। सेवा पुत्र स्त्री पुत्री सब करे, मुख्यपक्ष तो यह तहां यह प्रकार गादी नहीं बैठाये तहां तांई सृष्टि राखी चाहिये न राखिये तो सेवा कैसे सिद्ध होंय । जैसें वंशपद हैं तो सब परत्व हैं इन नरपदको देहगतपुंस्त्वको व्याख्यान किये तैसे जीवगत पुंस्त्व नरत्व हैं तब स्त्री तथा पुत्रिकोऊं अधिकार भयो वंशके उपक्रमको प्रयोजन भक्तिविस्तारार्थ तहां महाप्रभुके तीन नाम “भुवि भक्तिप्रचारैककृते स्वान्वयकृत्पिता। स्ववंशेस्थापिताशेषस्वमाहात्म्यः"३शभुवि विषेभक्ति, भक्ति सो सेवा ताके प्रचारार्थ अन्वय जो वंश ताकी कृति सो कृति त्रित्वप्रकारक पिता पुत्र या प्रकारकी न सुविद्याकृत वंश वंशीयनमें तादृश जनोद्धरणरूप सामर्थ्य न होय तब कैसे उपदेश देंइ सेवा दान करें तातें जनोद्धरणरूप अशेष माहात्म्यको स्थापन किये बालकत्वावच्छिन्न सबनमें स्थापन किये तहां स्त्री मुख्य हैं। वे गादीपर मुख्य रहैं तासों बैठे तब पतिको आविर्भाव इन विर्षे भयो तब उपदेश देइ बीड़ा अरोगे परंतु इतनो भेद जो स्त्रीको अौंग संबंध हैं, ताते अोपदेश भयो फेरि कोई गादी बालक बैठें तब फेरिके वह उनपास उपदेश लेय तो बाधक नहीं तैसे पुत्रीहू मुख्य है तब इनहूमें आविर्भाव है परन्तु इनकों एकदेश - - - SANDED
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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