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सहित नौमी ९ जन्मतिथि है मायाको जन्म नवमीमें कह्यो है | "नवम्यां योगनिद्राया जन्माष्टम्यां हरेरतः। नवमीसहितोपोष्या रोहिणी बुधसंयुता ॥” इति । यह निष्कर्ष सूर्योदयमें ७ मी एक पलहु होय तो न करिये बाधकहै “ पलवेधेपि विप्रेन्द्र सप्तम्या अष्टमी तु या। सुराया बिंदुना स्पृष्टं गंगांभ-कलशं यथा॥” इति । सूर्योदयसमें सप्तमी होय पीछे अष्टमी भई और दूसरे दिन कछू अष्टमी होय यह विद्धाधिका कहिये ऐसी होय तब दूसरे दिनकी उदयात् अष्टमी करें और अष्टमीको साठ्या भयो तब होऊ दिन अष्टमी उदयात् हैं यह शुद्धाधिका कहिये ऐसी होय तब पहले दिन करिये । पहली उदयात् न करे तो ३२ अपराधमें निवेश होय । अविद्ध भगवद्रतत्याग वेधरहित भगवगतको त्याग न करिये और दूसरी उदयात् अष्टमीको व्रत करै तो वह तिथि मिलावत है। सूर्य ६०घटीको भोग किये ता पीछे घटी रहैं सो मल है यह घटी एकट्टी होय तब तीसरे वर्ष मलमास आवत है । तातें वा महीनामें उत्सव न करनो तैप्से ये शेष घड़ी रहीं तिनमें उत्सव करे तो मल होय एकादशी तो मलमें करें बाधक नहीं और मलमें न करें “षष्टिदंडात्मिकायास्तु तिथेनिष्क्रमणं परे । अकर्मण्यं तिथिमलं विद्यादेकादशीदिने॥” इति ज्योतिर्निबंधवाक्ये । ऐसे अष्टमीको क्षय भयो तहाँ उदयकाल तो सप्तमीमें है अष्टमी वाही दिन है दूसरे दिन तो शुद्ध नवमी है। यह विद्धान्यून कहिये तातें सप्तमीसंयुक्त जो जन्मतिथि है नहीं वामें तो उत्सव होय नहीं जैसे गंगाजलको घट भरयो है और वामें मदिराकी छींट पड़े तो सब घट अपवित्र होय तैसें सप्तमीकों पलहूको स्पर्श अष्टमीकों होय तो मदिराबिंदुस्पर्शवत् यह निष्कर्ष जो अष्टमी मुख्य है
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