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________________ - - - वेध न आवे ऐसी करनी। तहाँ वेध चार प्रकारको-४५ को एक,५०को एक,५५को एक।५६को एक । प्रथम स्पर्श वेध, द्वितीय सङ्गवेध २, तृतीय शल्य वेध ३, चतुर्थ वेधवेध ४ "पंचचत्वारिंशता स्पर्शः सङ्गः पंचाशता मतः। पंचपंचाशता शल्यः वेधः षट्पञ्चाशता मतः ॥ स्पादिचतुरो वेधान् वर्जये द्वैष्णवो नरः॥” यातें४३ घटी ५९पल तांई वेध नहीं। ४४ पूर्ण भई और या ऊपर जितने पल ४५ के हैं यह स्पर्शवेध १, ऐसे ४८ घटी ५९ पलताई वेध नहीं। जब ४९ पूर्णभई और या ऊपर जितने पल सो ५० के हैं ये संगवेध २, ऐसे ५३ घड़ी ५९ पल तांई वेध नहीं, जब ५४पूर्ण भई और या ऊपर जितने । पल सों ५५ के हैं यह शल्य वेध ३, ऐसे ५४ घटी ५९ पलताई वेध नहीं । जब ५५पूर्णभई तापर जितने पल सो ५६के हैं। यह वेधवेध ४ा या प्रकार चार वेध युगभेद व्यवस्थासों मानिये । "स्पादिचतुरो वेधाः सुप्रसिद्धाः कृते हि वै । सङ्गादयस्तु त्रेतायां शल्यादौ द्वापरे कलौ॥” स्पर्शवेध सत्ययुगमें १, सङ्गवेध त्रेतामें २, शल्यवेध द्वापरमें ३, वेधवेध कलियुगमें ४ यही निष्कर्ष लिखे । " षट्रपंचाशच्चेद्वेधरहितं कर्त्तव्यं पूर्वमन्यथा। करणपि भगवन्मार्ग प्रवेशानन्तरं पंचाशद्वटिका दशमी चेत्तदा एकादशी त्याज्या" यातें कलियुगमें ५६का वेध मानिये । जब ही ५५ दशमी भई तब वह एकादशी न करें। याहीतें दशमी विद्धा एकादशी सकामतें न करिये । वेध विरोध बाधक होय तातें वेध ५६ को, वेध न आवे सो निष्काम एकादशी २४ करिये। किंच जन्माष्टमी ७ सप्तमीको वेध न आवे ऐसी करे याकों अरुणोदय वेध नहीं किंतु सूर्योदय वेध है "उदया। दुदया प्रोक्ता हरिवासरवर्जिता" इति वाक्यात् । याते अष्टमी LAMESNSig
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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