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किंच और माला वामेहू तुलसीकी माला धारण करे भगवान्को प्रिय हैं वा शुद्धकाष्ठकी माला धारण करें जामें काहू देवताको भाग नहीं सो शुद्धकाष्ठ वैष्णव हैं “वैष्णवा वै वनस्पतयः " इति श्रुतेः। याते ये दोऊ माला निष्काम हैं तातें धारण करें। तथा जपहू करें और माला रुद्राक्षप्रभृति सकाम हैं ताते स्वीकार नहीं, वेदविरोध बाधक होय और तुलसीकी तथा शुद्ध काष्ठकी माला धारण न करें तो बाधक होय "धारयति न ये मालां हैतुकाः पापबुद्धयः । नरकान निवत्तेते दग्धाः कोपानिना. हरेः॥” याहीते आज्ञा किये ." तुलसीकाष्ठजा माला धार्या | यज्ञोपवीतवत्" मालापि धार्या यज्ञोपवीतमालामें यह भेद यज्ञोपवीत टूटि जाय तब और ही पहिरे और माला टूटि जाय तो मणिका काढि गांठि बाँधि लेई वही माला काम आवे किंच तिलक उद्धपुंड्र करे । भगवच्चरणारविंदकी आकृति करे यह निष्काम तिलक और तिलक सकाम यातें अनित्य धर्म सो देवविरोध यातें निष्काम सो हरिमंदिरं " ललाटे तिलकं यस्य हरिमंदिरसंज्ञकम् । स वल्लभो हरेरेव नीचो वाप्युत्तमोपिवा ॥" इति । इतने तिलक भगवच्चरणतें च्युत भये तातें सो तिलक धारण न करिये । वर्तुलं तिर्यगच्छिद्रं हवं दीर्घतरं तनु । वक्र विरूपं बद्धायं भिन्नमूलं पदच्युतम् ॥” वर्तुलं गोल १ तिर्यक त्रिपुंड्र २ अच्छिद्रं ऊईपुंड्र चीरे विना ३ ह्रस्वं छोटा ४ दीर्घतरं नासिकांतम् ५ तनु अतिपतरो मीह ६ वक्र वांको ७ विरूपं एक लकीर मोटी एक पतरी ८ बद्धान ऊपरते बध्यो ९ भिन्न मूल नीचेंतें मध्य दोऊ लकीर जुदी १० इतनें तिलक भगवचरणारविंदतें छूटे ते तिलक सकामते न करने ऊईपुंडू निष्काम यही तिलक करनो। किंच एकादशीमें दशमीको
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