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________________ %3D पूजा यह पुष्टिमार्गमें सेवा तथा पूजाको भेद कालको रोध जा सेवाको सो पूजा जैसें मंगलभोग मंगला आरती यह प्रातही होय । शयनभोग शयन आरती यह सांझही होय याते प्रधानहों भोग ताकी आवृत्ति होय तो अंग कौन हैं । आचमन मुखवस्त्र वीटिका ताहूकी आवृत्ति होय जों भोग नहीं तो आचमन मुखवस्त्र काहेंको? "प्रधानावृत्तावंगान्यावर्त्तते" इति । प्रधानही अंग हैं। मृदा पूजांगमेव इति वृत्तौ हेतुमाह-“एककालं द्विकालं वा त्रिकालं वापि पूजयेत्।"तैसे शंखचक्रादिधारण पूजाकोही अंगहैं मृदा पूजांगमेव च इति एवकार कहें। जब मन्दिरमें जाय तब षट् मुद्रा धारण करे जो सहज न्हानो हो वा विदेशादिमें तब मुद्राधारण सर्वथा न करे । परंतु यों कह्यो हैं-"ऊर्द्धपुंडू त्रिपुंडूं वा मध्ये शून्यं न कारयेत् ।” ताते ऊर्द्धपुंड्र शून्य न राखनो संप्रदाय मुद्रा धारण करे "संप्रदायप्रयुक्ता च मुद्रा शिष्टानुसारतः । यथारुच्यथवा धार्या न तत्र नियमो यतः॥” संप्रदायश्रीगोपीजनवल्लभाय । यह अवश्य धारण करनी या उत्तमांगमें धारण करे ये शिष्टानुसार हैं हृदयपर्यंत उत्तमांगचक्रवत् मध्यमांगमें नहीं उच्चैश्चत्वारि चक्राणि इति च । ५ मुद्राको पूजामें धारण हैं सो संप्रदाय मुद्राको नेम नहीं उत्तमांगमें यथारुचि धारण करे ' यथारुच्यथवा धार्या' । यामें अथवापद हैं सो पक्षांतर हैं तातें या मुद्राको नियम नहीं जो पूजाकेई अंगमें धारण करे जब स्नान करे तब धारण करे तिलकशून्य न राखनों तातें टीकी देनी याको वचन नहीं और संप्रदाय मुद्राको तो अथवा पद करिके धारण हैं याते संप्रदाय मुद्रा तो सदा धारण करे और षट् मुद्रा तो सेवामें जाय तब धारण करें याते सकामते तप्तमुद्राको त्याग निष्कामते गोपी चन्दन करिके धारण करे Aswamme - REERIHARAT nommomHONEERE
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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