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________________ Mus । - मरा D सर्व निर्णय अत्र वैष्णवमार्गे-वेदमार्गविरोधो यत्र तत्र कर्त्तव्यः | यद्ययं नित्यो धर्मों भवेत् । नित्येऽपि वेदविरोधः सोढव्य इत्याहशङ्खचक्रादिकमिति सार्द्धश्लोकद्वयमिति शेषः। निर्गुणभक्ति युक्ति जो पुष्टि भक्तिमार्ग ता विषे वेदविरोध न करिये वेदविरोध सो वेदमें नहीं कहें सो न करनो जो अनित्य धर्म होय तो अनित्य धर्म दोय नक्षत्रके योग करके जयंति १ तथा सकाम १ ये दोऊ अनित्य धर्म वेदमें नहीं कहैं ते न करने और नित्य धर्म है सो करनो नित्य धर्म २ उत्सव १ तथा निष्काम ये करनो अढ़ाई श्लोक ताँईको निर्णय “शङ्खचक्राादिकं धार्य मृदा पूजाङ्गमेव तत् । तुलसीकाष्ठजा माला तिलकं लिङ्ग-मेव तत्॥ एकादश्युपवासादि कर्त्तव्यं वेधवर्जितम् । अन्यान्यपि तथा कुर्यादुत्सवो यत्र वै हरेः ॥ ब्राह्मेणैव तु संयुक्तं चक्रमादाय वैष्णवः। धारयेत्सर्ववर्णानां हरिसालोक्यकाम्यया ॥ तप्तमुद्राधारणं काम्यं । काम्य धारण करिये ते अनित्य धर्मको स्वीकार होय तो वेदविरोध बाधक होय यातें मृदा मुद्राधारण करिये " शंखचक्रादिकं धार्य मृदा पूजाङ्गमेव तत्” इति वाक्यात् । मृदा धारण न कारये तो बाधक हैं "शंखादिचिह्नरहितः पूजां यस्तु समाचरेत् । निष्फलं पूजनं तस्य हरिश्चापि न तुष्यति ॥” शंखादि चिह्नधारण विना पूजामें जाय तो पूजनहू निष्फल होय तथा हरिहू प्रसन्न न होय यातें पूजाको अङ्ग जानि अवश्य धारण कर्तव्य हैं। अब कहत हैं पूजाको अङ्ग हैं सेवाको तो अंग नहीं पुष्टिमार्गीयको तो सेवा अवश्य हैं तहां कहत हैं “सेवा मुख्या न तु पूजा मन्त्रमात्रपूजापरो न भवेत् । "सर्वपरिचर्या सेवा वस्त्र धोवे तहां ताई सेवा अति बहिरंगता हि सेवा तामें जा सेवाको कालको अनुरोधहै सो || - - ROOMIDNINonSI ।
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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