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________________ POTTATRENT नम् । नित्यं नैमित्तिकं काम्यं विष्णुपञ्चकमेव हि ॥ न त्याज्यं सर्वथा प्राज्ञैरनित्यं सर्वथा वपुः ॥” इति । एकादशी २४ मिलि १ जन्माष्टमी १ रामनवमी १ नृसिंहचतुर्दशी १ वामनद्वादशी ये विष्णुपंचक व्रत करनें। किंच पुष्टिमार्गमें भक्तदुःखनिवारणार्थ जो आविर्भाव सो मान्यो चाहिये । तहाँ मत्स्यावतार वेदके उद्धारार्थ प्रगट, कूर्मावतार चतुर्दशरत्नार्थ प्रगट,वाराहावतार ब्रह्मा सृष्टि काहेपर करें तातें भूमिके उद्धारार्थ प्रगट, भूमि भक्त हैं तातें उद्धार यह कारण नहीं किन्तु ब्रह्मा सृष्टि काहेपर करें भूमि भक्त हैं तातें उद्धार तो पूर्णावतारविषं। नृसिंहावतार जो प्रह्लाद सों भक्त तिनको क्लेश सह्यो न गयो तातें प्रगट, यह उत्सव मान्यो चाहिये । यह प्राकट्य भक्तोद्धारार्थ है । वामनावतार यद्यपि इंद्रकी स्थिरताको बलिकों छलिवेकों पधारे परन्तु राजा बलिकों आत्मनिवेदन भक्ति भई तातें यह हू भक्तार्थ प्राकट्य, ये उत्सव मान्यो चाहिये । परशुरामावतार व्यूहसहित प्रगट व्यूहांतर्गत प्राकट्य तातें मर्यादापुरुषोत्तम पुरुषोत्तम वामनावतार यह उत्सव मान्यो चाहिये । श्रीकृष्णचंद्र प्राकटयमें व्यूह जुदे प्रगट बुद्धावतारमें कलिकालानुरूपते पाषंडके वक्ता। कल्क्यवतारमें तोदुष्ट म्लेच्छ विनाशार्थ प्रगट यातें यह निष्कर्ष श्रीराम तो मर्यादापुरुषोत्तम हैं तातें उत्सव मान्यो चाहिये और नृसिंह वामन ये दोऊ अवतार तो भक्तकार्यार्थ प्रगट तातें उत्सव मान्यो चाहिये । श्रीकृष्णावतार तो मुख्य हैई यह उत्सव तो सबको मूल है यह उत्सव अवश्य माननोही जे सारस्वतकल्पमें प्रगटभये तिनकों ऐसे तो प्रति कलियुग कृष्णावतारसे सो पूर्ण नहीं इनको उत्सव माननों प्रसंगतें इनके व्रतको निर्णय लिखियत हैं। निबंधांतर्गत -
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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