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| गोटी तथा धारीको वस्त्र नयो होय और जन्माष्टमीको श्वेत कुलही होय तहाँ तो दूसरे उत्सवको केशरी होय जहाँ शृङ्गारोत्तर तिलक होय तहाँ जन्म दिनको भाव जहाँ राजभोग आयबेके समें तिलक होय तहाँ सुधास्थापनको प्रादुर्भाव आधाराधेय एक भये जहाँ राजभोग आर्ती पीछे तिलक तहाँ जन्म| समेंको भाव प्रहरदिन चढ़े प्रागट्य हैं। ताते पञ्जीरी तथा दहीभात तथा खाटो भात तो होय आठ मासाको भोजन महाभोगवत् यह राजभोग समें भोग आ॥ __ भाद्र सुदि ११ दानलीला, मुकुट काछनीको शृंगार मुकुट उद्बोधक हैं काछनीमें घेर है । सो सबनको एकत्र करत है। श्रीहस्तमें वेत्र है सो यष्टिका है यष्टिका ब्रह्मा है।" यष्टिका कमलासनः" इति । ब्रह्माते उत्पत्ति है तैसे वेत्र तो दानके लेवेके अनेक प्रकारके जे तरंग तिनकी उत्पत्ति करत हैं । प्रभु सुधासम्बन्ध विना अंगीकार न करे ताते गौओंमें जो सुधाको स्थापन ताको दान मांगनो सो भक्तनके अवयव द्वारा अनुभा वार्थ दानलीला है ॥ ___ अथ वामन द्वादशी। कटिमेखला जो क्षुद्र घण्टिका ताको अवतार । भूरूप कटि हैताको आभरण सो कर्मरूप है। कर्मको अधिकार भूमिपरही है। क्रियाशक्तिको आविर्भाव है याहीतें क्रियाशक्ति जो चरण ताको विस्तार किये हैं । भक्तिमार्गमें यह उत्सव मानत हैं ताको आशय वैष्णवको विष्णुपञ्चक व्रत करने पामोत्तरखण्डे द्वारकामाहात्म्यसमाप्तौ-" गोविन्दं परमानन्दं माधवं मधुसूदनम् । त्यक्त्वा नैव विजानाति पातिव्रतवृतः शुचिः॥ कृष्णजन्माष्टमीरामनवम्येकादशीव्रतम् । वामनद्वादशी तद्वन्नृहरेस्तु चतुर्दशी ॥ विष्णुपंचकमित्येवं व्रतं सर्वाधनाश
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