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सो उदावने भेट आवे सो खिलोनाकी तबकड़ीमें वंटीमें धरनी यातें नन्दरायजीके सम्बन्धी पालने बैठें ता समय ले आयें झगा टोपीके वस्त्र तथा हाथ पाँवके चूड़ाको रोक यह सौभाग्यको प्रभु हमकों अधिकार दिये। यह भाग्य या प्रकार मानि सेवा करे भगवत्प्रादुर्भावके साथही सुधाविर्भाव है तातें नौमीके दिन पहले दिनको शृङ्गार रहें और नन्दालयमें प्रागट्य नवमीमें है तब तो नवमी जन्मदिन भयो इतने स्वरसतें दशमीके दिन यही शृङ्गार होय आभरणको नियम और जन्माष्टमीके दिन उत्थापन भयें भोग धरि शय्याके वस्त्र घड़ी करि धरने शय्या और गैर धरनी रात्रिकों शय्या न रहें फेरि नौमीके दिन दुपहरकों बिछे यातें जो अहीरनके यह रीति। दोय रात्रि जागें जन्मदिनकों तथा देवकाजकों यह रीति जन्म दिनके रात्रि जगेमें जाको जन्मदिन ताकों जगावनों देवकाजके रात्रिजगेमें घरमें जो बड़ो होय सो जागे जातें यह जन्म दिनको रतिजगो हैं ताते शय्या न रहै प्रबोधनीके दिन तुलसीके व्याहको रतिजगो है सो देवकाज है तातेवा दिन श्रीनन्दरायजी मुख्य जागे प्रभु जागहू पौदहू यातें शय्या रात्रिकों बिछाई रहे तथा शय्या भोग प्रभृतिहू रहे और जन्माष्टमीकों शय्या भोग तथा रात्रिके बीड़ा सिंहासन पास रहें।
दूसरो उत्साह भगवत्प्रादुर्भावते दोय वर्ष पहले आविर्भाव जब जन्माष्टमी भई पीछे उत्सव आयो तब श्रीवृषभानजी नन्द रायजीको निमन्त्रण करि बुलाये । तब सब आये तहां प्रभु तो उत्सवकोही बागा पहिरे जन्माष्टमीको सुधाविर्भाव भयो है ह्याँ सुधारसको आविर्भाव भयो हैं तातें ह्याँ केशरी वस्त्र नये हैं| प्रभुको कुलही मात्रही नई इहाँ केशरी नये हैं आछोतुर्रा वेई हैं।
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